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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सम्पूर्ण विधान आपलागोंको एकही स्थानमें मिलजायगा। नतो सम्पूर्ण ग्रंथको उलटपुलट करना होगा नतो मूल / श्लोकोंको लगाकर आधीबातें समझना पडेगा न मंत्रशास्त्रियों के पछिपछि भटकना पड़ेगा मंत्रमहार्णवको हाथमें / शालेतेही आपको इष्टदेवताका मंत्रोद्धार, न्यास, ध्यान, पीठपूजा, पीठशक्ति, यंत्रोद्धार, देवासन, प्रतिष्ठा, आवरणपूजा पोडशोपचारपूजा, स्तोत्रादि सम्पूर्ण पञ्चाङ्गही पद्धतीकीरीतिपर एकही स्थानमें मिलजावेंगे सिर्फ पत्रोंको हाथमें लेकर कार्य स्वयं वा यजमानको कराते चले जावो क्रमपूर्वक मिलेगा प्रसंग कहीं खण्डित नहींहोगा जिस्के द्वारा आपके मंत्रकी सिद्धी होकर प्रयोगोंके करनेमें समर्थ होसक्तेहैं / इस मंत्रमहार्णवमें कोईभी मंत्र ऐसा आपको नहीं मिलेगा। जिस्का सम्पूर्ण विधान आपको उसी स्थानमें न मिलजावै किन्तु अवश्यही मिलेगा / और ऐसा कोई देवता, दैत्य, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, योगिनी अप्सरा, देवकन्या, नागकन्या, राक्षस, प्रेतादिक नहीं होगा जिस्का पूर्णविधान आपको मंत्रमहार्णवमें नमिल जावै किंतु सभीमिलेंगे। और अलोपाञ्जन, निधि ग्रहणा अन,रसायनिकक्रिया, कल्पादिक, मशमेरेजम, स्वप्नसिद्धि, कर्णपिशाचिनी, पुत्रोत्पत्ति, मोहनादिषट् प्रयोग नाना चेटकादि अनेकप्रकारके आपको इस मंत्रमहार्णवमें मिलेंगे मंत्रमहार्णवमें एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक देवताओं और प्रत्येक कार्योंके सिद्धीके पृथक्पृथक् अर्थ तरंग कियेगये हैं जिसमें किसी विषयके देखने वालोंको सम्पूर्ण ग्रंथ उलटपुलट न करनापडै. ऐसा कोई भी कार्य नहीं होगा जिसके सिद्धि करनेके निमित्त अनु-५ टान आपको मंत्रमहार्णवमें न मिले नहीं संपूर्णही मिलेगा। जहांतक मेरी दृष्टीमें आया है सभी विषय एकत्रित कर। For Private And Personal Use Only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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