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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir मं०म०मंत्रशास्त्रहीका काम था। आज अत्यंत खेदका समय है के ऐसा अमूल्य रत्न मंत्रशास्त्र इच्छाके पूर्णकरनेवाला इस भूमिः लोकसे लुप्त हुवाजाताहै / कारणके प्रथमतो आजकल ऐसे पदार्थोंका मिलनाहीं कठिनहै वह यदि किसीके पास का यत्किंचितहै भी तो गोपनीयवचनोंके कारण किसीको दर्शनभी नहीं कराता यदि थोडा बहोत मिलता भी है तोअशुद्ध / मलताहै किसीका पूजन नहीं किसीकी पीठशक्तिका पता नही किमि आवरणका ठिकाना नही कहीं केवल मंत्रही मिलताहै आप कहोके ऐसे विधानोंसे सिद्धी किसप्रकार होसक्ती है इसीकारण अबके मनुष्योंके अनुष्ठान करनेपर सिद्धी नहीं प्राप्तहोनेके कारण मंत्रशास्त्रको झूठा मानने लगे हैं / ऐसा मानना विद्वजनोंकी भूलहै / कारण के प्रथम तो शिवजी महाराजके वाक्यको मिथ्या माननाही अज्ञानताका कारण होताहै / दूसरे कुछ दिनो पहेलेही मंत्रशास्त्रका चमत्कार आपलागोंके दृष्टिगोचर होताही था / इस्से मंत्रशास्त्रको मिथ्या किसप्रकार बनासक्ते हो। किंतु ठीकठीक। विधानोंका न मिलना और मिलनेपर आप लोगोंके चित्तकी कातरताही सिद्धीके अवरोधका कारण होताहै मंत्रशास्त्रको मिथ्या बताना प्रत्यक्षमें भूलहै / आशा है के आप लोग विश्वास रक्खोगे कि मंत्रशास्त्र झूठा नहीं है / किंतु इस्की क्रिया गुप्त होरहीथी और कुछ साधकको साहस कमहोनके कारण मंत्रशास्त्रको झठा मानना पडाथा / ऐसे ऐसे भ्रमोंको दूर करनेके निमित्तसेही मंत्रशास्त्र में शिरोमाणि इस मंत्रमहार्णवका जन्म हुवा है। किंतु वैष्णव शैव और शाक्तोंके मनको प्रफुल्लितकरनेके निमित्तही अनेक प्राचीनमंत्रशास्त्रोंकी सहायतापूर्वक इसमंत्रमहार्णवको पंडित मंत्रशास्त्री माधौरायवैद्य प्रयागराजनिवासीने संग्राह कियाहै / इस्को अवलोकनकरनसे इष्टदेवताको प्रसन्नकरनेके निमित्त 1 // For Private And Personal Use Only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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