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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकों का विकास के लिए १०० का चिन्ह लिख कर उसके ऊपर, नीचे, मध्य अथवा दाहिनी ओर एक आड़ी रेखा लगा दी जाती थी, ३०० के लिए वैसी ही दो रेखाएँ लगा दी जाती थीं, परन्तु ४०० से १०० तक के लिए ऐसा नहीं था, इसके लिए १०० का चिन्ह लिख कर उसके आगे एक छोटी सी आड़ी रेखा लगा दी जाती थी और उसके पश्चात् ४०० से ६०० तक के लिए क्रमशः ४ से ६ तक के अंक लिख दिए जाते थे । अतः १०१ से ६६६. तक की संख्या, सैकड़े के चिन्ह के आगे दहाई का चिन्ह और अन्त में इकाई का अंक लिख कर लिखी जाती थी, उदाहरणार्थ ३४५ के लिए ३००+ ४०+५ अर्थात् पहिले ३०० का चिन्ह, फिर दाहिनी ओर को २० का चिन्ह और अन्त में ५ इकाई लिख दी जाती थी। यदि संख्या में दहाई अथवा इकाई नहीं होती थी, तो उस का अंक नहीं लिखा जाता था, उदाहरणार्थ ५५०१ में ५०० और १ अर्थात् ५०० के वाद १ इकाई लिखी जाती थी और दहाई का अभाव रहता था, ५१० में ५०० और १० अर्थात ५०० के वाद १० ( १ दहाई ) का चिन्ह लगा दिया जाता था और इकाई का अभाव रहता था । २००० से ६००२ तक की संख्याएँ भी उसी प्रकार लिखी जाती थी जिस प्रकार कि २०० से १०० तक की संख्या के लिए १००० के चिन्ह के दाहिनी ओर ऊपर की तरफ एक छोटी सी आड़ी अथवा नीचे को मुड़ी हुई सी रेखा लगा दी जाती थी, ३००० के लिए वैसी ही दो रेखाएँ लगा दी जाती थीं, परन्तु ४००० से १००० तक के लिए १००० का चिन्ह लिख कर एक छोटी सी आड़ी रेखा से क्रमशः ४ से ६ तक के अंक जोड़ दिए जाते थे। इसी प्रकार १०००० से १००० तक के लिए सम्भवतः १००० के चिन्ह के बाद एक छोटी आड़ी सी रेखा से १० से १० तक के दहाई चिन्ह जोड़ दिए जाते थे। अतः For Private And Personal Use Only
SR No.020455
Book TitleLipi Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Mehrotra
PublisherSahitya Ratna Bhandar
Publication Year2002
Total Pages85
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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