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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 1197 || 1500405004050010 www.kobatirth.org हुआ । कार्तिक सुदि एकम के दिन देवताओं ने श्री गौतमस्वामी के केवलज्ञान का महोत्सव किया। इससे उस दिन भी मनुष्यों को हर्ष पैदा हुआ । जब नन्दिवर्धन राजा ने प्रभु का निर्वाण हुआ सुना तो वह शोकसागर में 'हो गये। इससे उन्हें सुदर्शना नामक उनकी बहिन ने समझा बुझाकर आदर सहित द्वितीया के दिन अपने घर पर भोजन कराया। उस दिन से भाईदूज का त्यौहार प्रचलित हुआ । जिस रात्रि में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु निर्वाण पद पाये यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए उस रात्रि को क्रूर स्वभाववाला भस्मरात्रि नामक तीसवां बड़ा ग्रह भगवान् के जन्मनक्षत्र में (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में) संक्रमित हो गया था वह ग्रह दो हजार वर्ष की स्थितिवाला था, क्यों कि एक नक्षत्र में वह इतने समय तक रहता है। वे ग्रह हयासी हैं और उनके नाम निम्न प्रकार हैं:- अंगारक, विकालक, लोहिताक्ष, शनैश्वर, आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसंतानक, सोम, सहित आश्वासन कार्योपग, कर्बुरक अजकरक, दुंदुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णावह कंस, कंसनाम, कंसवरणाभ, नील नीलावभास, रूपी, बुध, रूपावभास, भस्म, भस्मराशि, . 'अगस्ति माणवक, कामस्पर्श धुर, प्रमुख स्वस्तिक, सौवस्तिक, वर्धमान, प्रलंब आभंकर, प्रभंकर, अरजा, विरजा, तिल, तिलपुष्पवर्ण, दक, दकवर्ण, कार्य, वन्ध्य, इंद्राग्नि, धूमकेतु, हरि, पिंगल, शुक्र, वृहस्पति, राहु विकट, विसंधिकल्प, जटाल, अरूण, अग्निकाल महाकाल, नित्यालोक नित्याद्योत स्वयंप्रभ अवभास, श्रेयस्कर, क्षमंकर, अशोक, वीतशोक, वितत, विवस्त्र, विशाल, शाल, सुव्रत अनिवृत्ति . " For Private and Personal Use Only 1 4050140505140 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छुट्टा व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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