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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandir एकजटी, द्विजटी, कर, करक. राजा, अर्गल, पुष्प, भाव और केतु । जब से दो हजार वर्ष की स्थितिवाला क्रूर भस्मराशि नामक ग्रह श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु के जन्मनक्षत्र में संक्रमित हुआ है तब से तपस्वी साधु, साध्वियों का उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ वन्दनादि पूजन सत्कार न होगा । इसी लिए इंद्र ने प्रभु से कहा कि हे प्रभो ! एक क्षणवार आपका आयु बढ़ाओं, जिससे आप जीवित होने से आपके जन्म नक्षत्र में संक्रमित हुआ यह भस्मराशि ग्रह आप के शासन को पीड़ा न पहुंचा सके । तब प्रभु ने कहा - हे. इंद्र ! कभी ऐसा नहीं हुआ कि क्षीण हुये आयु को जिनेश्वर भी बढ़ा सके, अतः तीर्थ को होनेवाली बाधा तो 2 प्र अवश्य ही होगी । पर छयासी वर्ष की आयुवाले कलकी नामक दुष्ट राजा को जब तू मारेगा तब दो हजार वर्ष . होने पर मेरे जन्म नक्षत्र पर से भस्मग्रह भी उतर जायेगा और तेरे स्थापित किये हुए कलकी पुत्र धर्मदत्त के राज्य 'से लेकर साधु साध्वियों का पूजा सत्कार विशेष होने लगेगा । जिस रात्रि को श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु कालधर्म पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए उस रात्रि में, ऐसे सूक्ष्म कुंथुवे पैदा हुए जो न हिलते चलते हुए तो छद्मस्थ साधु साचियों की नजर में भी न आसकें । ऐसी परिस्थिति में आज से संयम पालना दुराराध्य होगा यह समझकर बहुत से साधु साध्वियों ने आहार पानी त्याग कर अनशन कर लिया । क्यों कि उन्होंने विचारा कि अब से भूमि जीवाकुल हो जायेगी, संयम पालने योग्य क्षेत्र का भी प्रायः अभाव ही होगा और पाखण्डियों का जोर बढ़ेगा । सीसी eye For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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