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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 537 4. महौदधौ :-सागर, समुद्र। अस्तमेति युगभग्नकेसरैः संनिधाय दिवसं महोदधौ। 8/4 दिन को समुद्र में डुबोकर और अपने उन घोड़ों को लिए हुए सूर्य अस्ताचल की ओर चले जा रहे हैं, जिनके सिर नीचे की ओर उतरने के कारण झुके हुए हैं। 5. समुद्र :-पुं० [चन्द्रोदयाद् आपः सम्युगुन्दन्ति विलद्यन्ति अत्र। उन्दी क्लेदने+स्फायितञ्चीति रक्] समुद्र, सागर।। अच्छिन्नामल संतानाः समुद्रोर्म्य निवारिताः। 6/69 जैसे आपके यहाँ से निकलती हुई, निरंतर बहती हुई और समुद्र की लहरों से भी टक्कर लेने वाली। ज्वलन इव समुद्रान्तर्गस्तज्जलौघैः । 8/91 जैसे समुद्र के जल में रहने पर भी बड़वा नल की प्यास नहीं बुझ पाती। 6. सरिता पति :-पुं० [सरितां पतिः] समुद्र। तस्योपायन योग्यानि रत्नानि सरितां पतिः। 2/37 समुद्र भी उसके पास भेंट के योग्य रत्न भेजने के लिए। 7. सागर :-पुं० [सगरस्य राज्ञोऽयमिति। सगर+अण् यद्वान् गरः मृत्युः येन स अगरः अमृतं स्यमन्तमणिवा तेन सह वर्तमानः।] समुद्र, सागर। सागरादनपगा हि जाह्नवी सोऽपि तन्मुखरसैकवृत्तिभाक्।। 8/16 जैसे गांगा जी समुद्र के पास जाकर और मिलकर वहाँ से लौटने का नाम तक नहीं लेती और समुद्र भी उन्हीं के मुख का जल ले-लेकर बराबर उनसे प्रेम किया करता है। अम्भोज 1. अम्भोज :-कमल, पद्म। यदर्थम्भोजमिवोष्ण वारणं कृतं तपः साधनं मेतया वपुः। 5/52 जैसे कोई धूप बचाने के लिए कमल का छाता लगा ले, वैसे ही इन्होंने भी अपना कोमल शरीर कठोर तपस्या में क्यों लगा दिया। 2. अम्भोरुह :- कमल, पद्म। हेमाम्भोरुहसस्यानां तद्वाप्यो धाम सांप्रतम्। 2/44 मन्दाकिनी के सोन कमल उखाड़-उखाड़कर, उसने अपने घर की बावलियों में लगा लिए हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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