SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 536 कालिदास पर्याय कोश इसलिए कभी-कभी उन चट्टानों के पास पहुंचे हुए बादलों के टुकड़े उनके रंग की छाया पड़ने से संध्या के बादलों जैसे रंग-बिरंगे दिखाई पड़ने लगते हैं। 9. मेघ :-पुं० [मेहतीति । मिह + अच्, 'न्य वादीनाञ्च'इति कुत्वम्। मेहति सिञ्चति यः] बादल, मेघ, घन। विदूर भूमिनवमेघ शद्वादुद्भिन्नया रत्लशलाकयेव। 1/24 जैसे नये मेघ के गरजने पर विदूर पर्वत के रत्नों में अंकुर फूट जाते हैं। शशिना सहयाति कौमुदी सहमेघेन तडित्प्रलीयते। 4/33 चाँदनी चन्द्रमा के साथ चली जाती है, बिजली बादल के साथ ही छिप जाती है। 10. माहेन्द्र :-बादल, मेघ। निदाधकालोल्वण तापयेव माहेन्द्रमम्भः प्रथमं पृथिव्या। 7/84 जैसे गर्मी से तपी हुई पृथ्वी वर्षा की पहली बूंदें ग्रहण करती हैं। 11. विद्युत्वत् :-बादल, मेघ। सोऽहं तृष्णातुरैवृष्टिं विद्युत्वानिव चातकैः। 6/27 — जैसे प्यासे चातक, बादलों से जल की बूंदे माँगते हैं। अम्बुनिधि 1. अम्बुनिधि :-सागर, समुद्र। असूत सा नागवधूपभोग्यं मैनाकमम्भोनिधि बद्धसख्यम्। 1/20 मेना के उस गर्भ से मैनाक नामक वह प्रतापी पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने नाग कन्या के साथ विवाह किया, समुद्र के साथ मित्रता की। 2. अम्बुराशि :- सागर, समुद्र। हस्तु किंचित्परिलुप्त धैर्यश्चन्द्रीदयारम्भ इवाम्बु राशिः। 3/67 जैसे चन्द्रमा के निकलने पर समुद्र में ज्वार आ जाता है, वैसे ही पार्वती जी को देखकर महादेवजी के हृदय में हलचल होने लगी। 3. तोयनिधि :-पुं० [तोयानि निधीयन्तेऽत्रां, नि+धा+कि, तोयानां निधिर्वा] समुद्र, सागर। पूर्वापरौ तोयनिधि वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः। 1/1 वह पूर्व और पश्चिम के समुद्रों तक फैला हुआ ऐसा लगता है, मानो वह पृथ्वी को नापने-तौलने का मापदण्ड हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy