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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 538 कालिदास पर्याय कोश 3. अरविन्द :-क्ली० [अराकराणि हलानि तत्सादृश्यात् अराः, तान् विन्दति लभते इत्यथे विद्+श] कमल, जलज। उन्मीलितं तूलिकयेव चित्रं सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम्। 1/32 जैसे फूंची से ठीक रंग भरने पर चित्र खिल उठता है और सूर्य की किरणों का परस पाकर कमल का फूल हँस उठता है। आज हतुस्च्चरणौ पृथिव्यां स्थालरविन्दश्रियमव्यवस्थाम्। 1/33 जब वे अपने इन चरणों को उठा-उठाकर रखती चलती थीं, तब तो ऐसा जान पड़ता था, मानो वे पग-पग पर स्थल कमल उगाती चल रही हो। उत्पल :-क्ली० [उत्पलतीति । पल् गतौ, पचाद्य च] कमल, जलज। च्युत केशरदूषिते क्षणान्यवतं सोत्पलताडनानि वा। 4/8 जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका पराग पड़ जाने से, जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं। कमल :-क्ली० [कमेः णिङभावे वृषादित्वात् क्लच । कम्+अल्+अच्] कमल, जलज। दीर्घिका कमलोन्मेषो यावन्मात्रेण साध्यते। 2/33 उसके नगर पर केवल उतनी ही किरणें फैलाता है, जिनसे ताल के कमल भर खिल उठे। तथातितप्तं सविमुर्गभस्तिभिर्मुखं तदीयं कमलश्रियं दधौ। 5/21 इस प्रकार तप करते रहने पर भी उनका मुख सूर्य की किरणों से तपकर कुम्हलाया नहीं, वरन् कमल के समान खिल उठा। लीला कमल पत्राणि गणयामास पार्वती। 6/84 उस समय पार्वतीजी अपने पिता के पास नीचा मुँह किए खिलौने के कमल के पत्ते बैठी गिन रही थीं। तयो रुपर्यायतनालदंडमाधत्त लक्ष्मीः कमलात पत्रम्। 7/89 जल के बूंदों से भरे हुए लम्बी डंठल वाले कमल का छत्र उनके ऊपर लगाकर खड़ी हो गईं। उच्छ्वसत्कमल गन्धये ददौ पार्वती वदन गन्ध वाहिने। 8/19 तब खिले हुए कमल की गंध वाले पार्वतीजी के मुंह की फूंक पाने के लिए वे अपना नेत्र उठाकर उनके मुँह तक पहुँचा देते। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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