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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 819 ऋतुसंहार प्रचण्ड - [ प्रकर्षेण चण्डः - प्रा० श०] उत्कट, अत्यंत तीव्र, उग्र, भीषण, भयंकर, भयावह। प्रचण्डसूर्यः स्पृहणीयचन्द्रमाः सदावगाहक्षतवारिसंचयः। 1/1 धूप बड़ी-कड़ी हो गई है, और चंद्रमा बड़ा सुहावना लगता है, कोई चाहे तो दिन-रात गहरे जल में स्नान कर सकता है। मृगाः प्रचण्डातपतापिता भृशं तृषा महत्या परिशुष्क तालवः। 1/11 अत्यधिक जलते हुए सूर्य की किरणों से झुलसे हुए जिन जंगली पशुओं की जीभ प्यास से बहुत सूख गई है। 5. प्रचुर - [ प्र + चुर् + क] अति, बहुल, विशाल, विस्तृत, बहुत अधिक, भरपूर। प्रचुरगुडविकारः स्वादुशालीचरम्यः प्रबलसुरतकेलिर्जातकन्दर्पदर्पः। 5/16 मिठाइयाँ बहुतायत से मिलती हैं, स्वादिष्ट चावल और ईख चारों ओर सुहाते हैं, लोग बहुत संभोग करते हैं, कामदेव भी पूरे वेग से बढ़ जाता है। प्रबल - [प्रकृष्टं बलं यस्य - प्रा० ब०] प्रचंड, अत्यधिक, तीव्र। रचित कुसुमगन्धि प्रायशो यान्ति वेश्म प्रबल मदनहेतोस्त्यक्तसंगीत रागः। 3/23 सब गाना-बजाना छोड़कर अत्यंत कामातुर होकर उन घरों में चली जा रही हैं, जिनमें सुगंधित फूलों की सेज बिछी हुई है। प्रचुरगुडविकारः स्वादुशालीक्षुरम्य: प्रबलसुरतकेलिर्जातकन्दर्पदर्पः। 5/16 मिठाइयाँ बहुत मिलती हैं, स्वाद वाले चावल और ईख चारों ओर सुहाते हैं, लोग बहुत संभोग करते हैं, कामदेव भी पूरे वेग से बढ़ जाता है। प्रभा 1. आभा - [ आ + भा + अङ्] प्रकाश, चमक, कांति। कर किसलयकान्तिं पल्लवैविदुमाभैरुपहसति वसन्तः कामिनीनामिदानीम्। 6/31 मूंगे जैसी लाल-लाल कोमल पत्तों की ललाई (चमक) दिखाकर वसंत उन कामिनियों की कोंपलों जैसी कोमल और लाल हथेलियों को जला रहा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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