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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 765 ऋतुसंहार सेमर के वृक्षों के कुंजों (वनों) में फैली हुई आग वृक्ष के खोखलों में सुनहला पीला प्रकाश चमकाती हुई। दाह - [ दह + घब] जलन, दावाग्नि, अग्नि, आग। पटुतर दवदाहोच्छुष्क प्ररोहाः परुष पवन वेगोत्क्षिप्त संशुष्कपर्णाः। 1/22 जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपटों से सब वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, अंधड़ में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। 5. पावक - [ पू + ण्वुल्] आग, अग्नि। तटविटपलताग्रालिङ्गनव्याकुलेन दिशि दिशि परिदग्धा भूमयः पावकेन। 1/24 तीर पर खड़े हुए वृक्षों और लताओं की फुनगियों को चूमती जानेवाली जंगल की आग से जहाँ-तहाँ धरती जल गई है। 6. वह्नि - [ वह + निः] अग्नि, आग। गजगवयमृगेन्द्रा वह्निसंतप्तदेहा सुहृदइव समेता द्वन्द्वभावं विहाय। 1/27 आग से घबराए हुए और झुलसे हाथी, बैल और सिंह, आज मित्र बनकर साथ-साथ इकट्ठे होकर। अतिशयपरुषाभिर्गीष्मवह्नः शिखाभिः समुपजनिततापं हादयन्तीव विन्ध्यम्। 2/28 गरमी की आग की लपटयें से झुलसे हुए विंध्याचल की तपन को यह समझकर बुझा रहे हैं। आदीप्तवह्निसदृशैर्मरुताऽवधूतैः सर्वत्र किंशुकवनैः कुसुमावननैः। 6/21 पवन के झोंकों से हिलती हुई, जिन पलास के वृक्षों की फूली हुई शाखाएँ जलती हुई आग की लपटों के समान दिखाई देती हैं, ऐसे पलास के जंगलों से। 7. हुतवह - [ हु + क्त + वहः] अग्नि, आग। हुतवहपरिखेदादाशु निर्गत्य कक्षाद्विपुल पुलिनदेशा निम्नगां संविशन्ति। 1/27 आग से घबराए हुए वे, घास के जंगल से झटपट निकल आए हैं और नदी के चौड़े और बलुए तीर पर आकर विश्राम कर रहे हैं। 8. हुताशन - [ हु + क्त + अशनः] अग्नि, आग। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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