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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 764 कालिदास पर्याय कोश 4. शैल - [ शिला + अण] पर्वत, पहाड़। शैलेयजालपरिणद्ध शिलातलान्तान्। 6/27 जिन पर्वतों पर चट्टानें फैली हुई हैं, उन्हें देखकर। अनल 1. अग्नि [अंगति उर्ध्व गच्छति - अङ्ग + नि नलोपश्च] आग, आग का देवता । हुताग्निकल्पैः सवितुर्गभस्तिभिः कलापिन: क्लान्तरशरीर चेतसः।1/16 हवन की अग्नि के समान जलते हुए सूर्य की किरणों से जिन मोरों के शरीर और मन दोनों सुस्त पड़ गए हैं। विषाग्निसूर्यातपतापितः फणी न हन्ति मण्डूककुलं तृषाकुलः। 1/20 धूप की लपटें और अपने विष की झार (अग्नि) से जलने के कारण साँप मेढकों को नहीं मार रहा है। प्रसरति तृणमध्ये लब्धवृद्धिः क्षणेन ग्लपयति मृगवर्ग प्रान्तलग्नो दवाग्निः। 1/25 वन के बाड़े से उठती हुई आग सभी पशुओं को जलाए डाल रही है और क्षण भर में आगे बढ़कर घास पकड़ ले रही है। परिणतदलशाखानुत्पतन् प्रांशुवृक्षान्भ्रमति पवनधूतः सर्वतोऽग्निर्वनान्ते। 1/26 पवन से भड़काई हुई आग उन ऊंचे वृक्षों पर उछलती हुई वन में चारों ओर घूम रही है, जिनकी डालियों के पत्ते बहुत गर्मी पड़ने से पक-पककर झड़ते जा रहे 2. अनल - [ नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य - न० ब०] आग, अग्नि, अग्निदेवता। न शक्यते द्रष्टुमपि प्रवासिभिः प्रियावियोगादनलदग्ध मानसैः। 1/10 परदेश में गये हुए जिन प्रेमियों का हृदय अपनी प्रेमिकाओं के बिछोह की तपन से झुलस गया है, उनसे देखा नहीं जाता। 3. जात - [ जन + क्त] उद्भूत, उत्पन्न, आग, अग्नि। बहुतर इव जातः शाल्मलीनां वनेषु स्फुरति कनकगौरः कोटरेषुदुमाणाम्। 1/26 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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