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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेघदूतम् 725 6. सततगति - [ सम् + तन् + क्त, समः अन्त्यलोपः] वायु, हवा । नेत्रा नीताः सततगतिना यद्विमानाग्रभूमिः। उ० मे08 तुम्हारे जैसे बहुत से बादल, वायु के झोंकों के साथ वहाँ के भवनों के ऊपरी खंडों में घुसकर। ___ मही 1. अवनि - [ अव + अनि] पृथ्वी। तामुन्निद्रामवनिशयनां सौधवातायनस्थः । उ० मे० 28 भवन के झरोखों पर बैठकर उसे देखना, उस समय वह धरती पर उनींदी सी पड़ी मिलेगी। अन्वेष्टव्यामवनिशयने संनिकीणक पाश्वा । उ० मे० 30 जो वहीं कहीं धरती पर एक करवट पड़ी होगी। 2. क्षिति [ क्षि + क्तिन्] पृथ्वी। तस्योत्संगे क्षितितलगतां तां च दीनां ददर्श। उ० मे० 62 उसने देखा कि वह बेचारी उस भवन में धरती पर पड़ी हुई है। 3. भुव - पृथ्वी। मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तार पाण्डुः । पू० मे० 18 पृथ्वी का उठा हुआ ऐसा स्तन हो, जिसके बीच में काला हो और चारों ओर पीला हो। अन्तस्तोयं मणिमयभुवस्तुंगमभ्रंलिहाग्राः। उ० मे० 1 यदि तुम्हारे भीतर नीला जल है, तो उनकी धरती भी नीलम से जड़ी हुई है, और यदि तुम ऊँचे पर हो तो उनकी अटरियाँ भी आकाश चूमती हैं। भुवि - पृथ्वी। स्रोतोभूत्वा भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम्। पू० मे० 49 रन्तिदेव की कीर्ति बनकर नदी के रूप में धरती पर बह रही है। विन्यस्यन्ती भुवि गणना देहलीदत्तपुष्पैः। उ० मे० 27 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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