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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 726 www. kobatirth.org कालिदास पर्याय कोश वह देहली पर जो फूल नित्य रखती चलती है, उन्हें धरती पर फैलाकर गिन रही होगी । 5. भूमि भूमि । नेत्रा नीताः सतत गतिना यद्विमानाग्रभूमिः । उ० मे० 8 8. - [ भवन्त्यस्मिन् भूतानि भू + मि किच्च वा ङीप् ] पृथ्वी, मिट्टी, तुम्हारे जैसे बहुत से बादल वायु के झोंकों के साथ वहाँ के भवन के ऊपरी खंडों में घुसकर । 6. मही - [ मह् + अच् + ङीष् ] पृथ्वी । कर्तुं यच्च प्रभवति महीमुच्छिलीन्ध्रामवन्ध्यां । पू० मे० 11 तुम्हारे जिस गर्जन से कुकरमुत्ते निकल आते हैं और धरती उपजाऊ हो जाती है। 7. वसुधा [ वस् + उन् + धा] पृथ्वी । त्वन्निष्यन्दोच्छ्वसितवसुधागन्धसंपर्क रम्यः । पू० मे० 46 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसमें तुम्हारे बरसाए हुए जल से आनंद की साँस लेती हुई धरती का गंध भरा होगा । स्थल - [ स्थल् + अच्] पृथ्वी, भूमि, जमीन । धारासिक्त स्थल सुरभिणस्त्वन्मुखास्य बाले । उ० मे० 48 हे बाला! तुम्हारे उस मुख से जिसमें से ऐसी सोंधी गंध आती है, जैसे पानी पड़ने पर धरती से आती है । 1. मित्र दोस्त, सखा, साथी, - - मित्र सहचर । न क्षुद्रोऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय पू० प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर्यस्तथोच्चैः । मे० 17 जब दरिद्र लोग भी आए हुए मित्र के उपकार का ध्यान करके उसका सत्कार करने में नहीं चूकते, तब ऊँचों का कहना ही क्या । 2. सखा [ सह समानं ख्यायते ख्या + डिन्, नि०] मित्र, साथी, सहचर । उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं । पू० मे० 24 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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