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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org 602 कालिदास पर्याय कोश बतलाइए भला बढ़ती हुई रात की सजावट खिले हुए चन्द्रमा और तारों से होती है या सबेरे के सूर्य की लाली से । 10. शार्वर :- [ शर्वरी+अण्] रात्रिकालीन, रात । नून मुन्नमति यज्वनां पतिः शार्वरस्य तमसो निषिद्धये । 8 /58 इससे यह निश्चय जान पड़ रहा है कि रात का अँधेरा दूर करने के लिए चन्द्रमा निकले चले आ रहे हों । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षिति 1. क्षिति : [ क्षि+ क्तिन् ] पृथ्वी, निवास, आवास । मूर्धान मालि क्षिति धारणोच्चमुच्चैस्तरं वक्ष्यति शैलराजः । 7/68 पृथ्वी धारण करने से उनका सिर वैसे ही ऊँचा था, उस पर शंकर जी से सम्बन्ध करके से उनका सिर वैसे ही ऊँचा हो जाएगा । क्षितिविरचितशय्यं कौतुकागारमागात्। 9/94 उस शयन घर में पहुँचे जहाँ सजी हुई सेज बिछी हुई थी । 2. पृथ्वी : - [ पृथ्+षिंवन्, संप्रसारणम् ] पृथ्वी, पृथिवी । पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः । 1/1 वह पूर्व और पश्चिम के समुद्रों तक फैला हुआ ऐसा लगता है, मानो वह पृथ्वी को नापने तौलने का माप दण्ड हो । आजहतुस्तच्चरणै पृथिव्यां स्थलारविन्द श्रियमव्यवस्थाम् । 1 / 33 जब वे अपने इन चरणों को उठा-उठाकर रखती चलती थीं, तब तो ऐसा जान पड़ता था, मानो वे पग-पग पर स्थल कमल उगाती चल रही हों। 3. धरित्री : - [ धृ + इ + ङीष् ] पृथ्वी, भूमि, मिट्टी | भास्वन्ति रत्नानि महौषधीश्च पृथूपदिष्टां दुदुहुर्धरित्रीम् । 1/2 राजा पृथु के कहने पर पृथ्वी रूपी गौ से सब चमकीले रत्न और जड़ी-बूटियाँ दूहकर निकाल लीं। यज्ञाङ्गयोनित्वमवेक्ष्य यस्य सारंधरित्रीधरणक्षमं च । 1/17 यज्ञ में काम आने वाली सामग्रियों को उत्पन्न करने के कारण और पृथ्वी को संभाले रखने की शक्ति होने के कारण । 4. भुव:- [ भवत्यत्र, भू-आधारादौ - क्युन् ] पृथ्वी, स्वर्ग । For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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