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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 601 कुमारसंभव जैसे दिन में दिखाई देने वाले निस्तेज चन्द्रमा की किरण साँझ होने की बाट जोहती है। वद प्रदोषे स्फुटचन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/44 बताइए बढ़ती हुई रात की सजावट खिले हुए चन्द्रमा और तारों से होती है, या सबेरे के सूर्य की लाली से। 6. यामिनी :-[याम+इनि+ङीप] रात। यामिनी दिवससंधि संभवतेजसि व्यवहिते सुमेरुणा। 8/55 सूर्यास्त हो जाने से रात और दिन का मेल करने वाली साँझ का सब प्रकाश सुमेरु पर्वत के बीच में आ जाने से जाता रहा। 7. रजनी :-[रज्यतेऽत्र, रञ्ज+कनि वा ङीप] रात। भवन्ति यत्रौषधयो रजन्यामतैलपूराः सुरतप्रदीपाः। 1/10 रात को चमकने वाली जड़ी बूटियाँ उनकी काम-क्रीड़ा के समय बिना तेल के दीपक बन जाती हैं। रजनीतिमिरावगुण्ठिते पुरमार्गेघनशब्दविल्कवाः। 4/11 अब वर्षा के दिनों में रात की घनी अंधियारी से भरे डरावने नगर के मार्गों में बिजली की कड़कड़ाहट से डर उठने वाली। 8. रात्रि:-[राति सुखं भयं वा रा+त्रिप् वा ङीप्] रात। स्वकालपरिमाणेन व्यस्तरात्रि दिवस्यते। 2/8 आपने समय की जो माप बना रखी है, उसके अनुसार जो दिन और रात होते हैं। निनाय सात्यन्त हिमोत्किरानिलाः सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा। 5/26 पूस की जिन रातों में वहाँ का सरसराता हुआ पवन चारों ओर हिम ही हिम बिखरेता चलता था। रात्रिवृत्तमनु योक्तुमुद्यतं सा प्रभात समये सखीजनम्। 8/10 जब इनकी सखियाँ इनसे रात की बातें पूछने लगती। एतदुद्गिरति चन्द्रमण्डलं दिग्रहस्यमिव रात्रिनोदितम्। 8/60 जो चन्द्रमा दिनभर दिखाई नहीं देता था, वह उस समय निकला हुआ ऐसा लगता है, मानो रात के कहने से। 9. विभावरी :-[वि+भावनिप् ङीप्, र आदेश:] रात। वद प्रदोषे स्फुट चन्द्रतारका विभावरी यद्यरुणाय कल्पते। 5/44 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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