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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीर्षच्छेद्यं परिच्छद्य नियन्ता शस्त्रमाददे । 15 / 51 राम ने निश्चय कर लिया कि इसका सिर काटना ही होगा, उन्होंने हाथ में शस्त्र उठा लिया। 415 शिला 1. दृषद :- [दृ + अपि षुक्, हस्वश्च] चट्टान, शिला । दृषदो वासितोत्सङ्गा निषण्ण मृग नाभिभि: । 4/74 उन पथरीली पाटियों पर बैठकर सुस्ताने लगे जिनमें से कस्तूरी मृग के बैठने से सुगंध आ रही थी। 2. शिला :- [शिल + टाप्] पत्थर, चट्टान । प्रत्यपद्यत चिराय यत्पुनश्चारु गौतमवधूः शिलामयी । 11/34 उसके छूते ही पति के शाप से पत्थर बनी हुई अहल्या को, फिर इतने दिनों पीछे पहले वाला सुन्दर । पादपाविद्ध परिघः शिलानिष्पिष्ट मृद्गरः । 12/73 पेड़ों से मार-मारकर राक्षसों की लोहे की गदाएँ तोड़ डालते थे और बड़ी चट्टानें पटक-पटक कर । रुरोध रामं शृङ्गीव टङ्कच्छिन्न मनः शिलः । 12/80 राम का मार्ग रोककर उसी प्रकार खड़ा हो गया, जैसे टाँगी से कटी हुई कोई मैनसिल की चट्टान आ गिरी हो । शुद्ध 1. पावन : - [ पू+ णिच् + ल्युट् ] पवित्र, पुनीत, विशुद्ध, परिष्कृत | वामनाश्रमपदं ततः परं पावनं श्रुतमृषेरुपेयिवान् । 11/22 वहाँ से रामचंद्रजी वामन के उस पवित्र आश्रम में गए, जिसके विषय में विश्वामित्र जी ने उन्हें सब बता दिया था। " 2. विशुद्ध :- [ वि + शुध् + क्त] पवित्र, निष्पाप, बेदाग, निष्कलंक | हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा । 1/10 सोने का खरापन या खोटापन आग में डालने पर ही जाना जाता है। स किवदन्तीं वदतां पुरोगः स्ववृत्तमुद्दिश्य विशुद्धवृत्तः । 14 / 31 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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