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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 414 कालिदास पर्याय कोश तमरण्यसमाश्रयोन्मुखं शिरसा वेष्टनशोभिना सुतः। 8/12 जब राजा रघु जंगल में जाने को उद्यत हुए, तब अज ने मनोहर पगड़ी वाला अपना सिर उनके चरणों में नवाकर। नमयति स्म स केवलमुन्नतं वनमुचे नमुचेररये शिरः। 9/22 राजा दशरथ ने केवल नमुचि राक्षस के शत्रु तथा जल बरसाने वाले एक इंद्र के आगे ही, अपना ऊँचा मस्तक झुकाया। करिष्यामि शरैस्तीक्ष्णैस्तच्छिरः कमलोच्चयम्। 10/44 अपने तीखे बाणों से उसके सिरों को कमल के समान उतारकर रणभूमि को भेंट चढ़ाऊँगा। वेपमान जननी शिरश्छिदा प्रागजीयत घृणा ततो मही। 11/65 अपनी काँपती हुई माता का सिर काट लिया था, उस समय उन्होंने पहले तो घृणा को जीत लिया और फिर पृथ्वी को जीत लिया था। मरुतां पश्यतां तस्य शिरांसि पतितान्यपि। 12/101 रावण के कटे हुए सिरों को देखकर भी देवताओं को विश्वास नहीं हुआ। सौमित्रिणा तदनु संससृजे स चैनमुत्थाप्य नम्रशिरसं भृशमालिलिङ्ग। 13/73 तब भरत जी लक्ष्मण से मिले और प्रणाम के लिए झुके हुए लक्ष्मण के सिर को उठाकर, उन्हें अपनी छाती से लगा लिया। शुशुभे विक्रमोदग्रं ब्रीडयावनतं शिरः। 15/27 अपनी प्रशंसा सुनकर वे शील के मारे लजा गए और अपना सिर झुका लिया। सर्पस्येव शिरोरत्नं नास्य शक्तित्रयं परः। 17/63 जैसे सर्प के सिर से मणि नहीं निकाली जा सकती, वैसे ही शत्रु इनके प्रभाव, उत्साह और मंत्र इन तीन शक्तियों को नहीं खींच सके। दधुः शिरोभिर्भूपाला देवाः पौरंदरी मिव। 17/79 जैसे देवता लोग इंद्र की आज्ञा मानते हैं, वैसे ही राजा लोग उनकी आज्ञा अपने सिर-माथे चढ़ाते थे। उच्चैः शिरस्त्वाज्जितपारियानं लक्ष्मीः सिषेवेकिल पारियात्रम्। 18/16 राजलक्ष्मी उनके प्रतापी पुत्र पारियात्र की सेवा करने लगी, जिन्होंने अपने सिर की ऊचाई से पारियात्र पर्वत को भी नीचा दिखा दिया था। 5. शीर्ष :-[शिरस् पृषो० शीर्षादेशः, शृ + क सुक् च वा] सिर। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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