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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 413 रघुवंश तत्प्रतिद्वन्द्विनो मूर्ध्नि दिव्याः कुसुमवृष्टयः। 15/25 उसके प्रतिद्वन्द्वी शत्रुघ्न के ऊपर स्वर्ग से फूलों की वर्षा होने लगी। मानोन्नतेनाप्यभिवन्द्य मूर्धा मूर्धाभिषिक्तं कुमुदो बभाषे। 16/81 राजा कुश को मान से उठा हुआ अपना सिर नवाकर कुमुद ने प्रणाम किया और प्रणाम करके वह बोला। तस्यैकस्योच्छ्रितं छत्रं मूर्ध्नि तेनामलत्विषा। 17/33 यद्यपि राज-छत्र केवल अतिथि के सिर पर ही लगा हुआ था, पर उस श्वेत रंग के छत्र ने। 3. मौलि :-[मूलस्यादूरभवः इज] सिर, चोटी। प्रवर्तयामास किलानुसूया त्रिस्रोतसं त्र्यम्बकमौलिमालाम्। 13/51 अनुसूयाजी उन त्रिपथगा गंगा जी को यहाँ ले आई हैं, जो शिवजी के सिर पर माला के समान सुन्दर लगती हैं। लोकेन भावी पितुरेव तुल्यः संभावितो मौलिपरिग्रहात्सः। 18/38 उस बालक सुदर्शन ने जब सिर पर मुकुट धारण किया, तभी प्रजा ने आँक लिया कि यह पिता के समान ही तेजस्वी होगा। सालक्तको भूपतयः प्रसिद्धैर्ववन्दिरे मौलिभिरस्य पादौ। 18/41 राजाओं ने अपने प्रसिद्ध मुकुटों से उन महावर लगे पैरों का वन्दन किया। शिर :-[शृ + क] सिर। अपनीतशिरस्त्राणाः शेषास्तं शरणं ययुः। 4/64 उनमें से जो जीते बच गए, उन्होंने अपने सिरों से लोहे के टोप उतार-उतार कर रघु के चरणों में रख दिए। आधोरणानां गजसंनिपाते शिरांसि चक्रैर्निशितैः क्षुराग्रैः। 7/46 जहाँ हाथियों का युद्ध हो रहा था, वहाँ पैने छुरे वाले चक्रों से जिन हाथीवानों के सिर कट गए थे। तस्तार गां भल्ल निकृतकण्ठैहुँकार गर्भर्द्विषतां शिरोभिः। 7/58 जो हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे, उनके सिर काट-काट कर अज ने पृथ्वी पाट दी। इति शिरसि स वामं पादमाधायराज्ञा मुदवहदनवद्यां तामवद्यादपेतः।7/70 इस प्रकार पवित्र अज उन राजाओं के सिरों पर बायाँ पैर रखकर, सुंदरी इंदुमती को लेकर चले। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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