SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 313 13. जनेश्वर :-[जन् + अच् + ईश्वरः] राजा। राघवान्वितमुपस्थितं मुनिं तं निशम्य जनको जनेश्वरः। 11/35 जब राजा जनक को यह समाचार मिला कि विश्वामित्र जी के साथ राम और लक्ष्मण भी आए हुए हैं। इत्यारोपित पुत्रास्ते जननीनां जनेश्वराः। 15/91 इस प्रकार पुत्रों को राज्य देकर उन चारों राजाओं ने अपनी स्वर्गीया माताओं के। 14. दण्डधर :-[दण्ड् + अच् + धरः] राजा। बल निषूदनमर्थपतिं च तं श्रमनुदं मनुदण्डधरान्वयम्। 9/3 दूसरे हैं मनुवंशी राजा दशरथ, जिन्होंने सुकर्मियों को धन देकर उनका पालन-पोषण किया। 15. धराधिप :-[धृ + अच् + टाप् + अधिपः] राजा। इति विस्मृतान्यकरणीयमात्मनः सचिवावलम्बितधुरं धराधिपम्। 9/69 इस पकार अपना सब काम भूले हुए और राज्य का भार मंत्रियो पर छोड़कर वन में आए हुए राजा दशरथ का मन। 16. नरदेव :-[7 + अच् + देवः] राजा। स पूर्वतः पर्वतपक्ष शातनं ददर्श देवं नरदेव संभवः। 3/42 राजा रघु क्या देखते हैं कि पर्वतों के पंख काटने वाले इन्द्र स्वयं उस घोड़े को। अथ स्तुते वन्दिभिरन्वयज्ञे सोमार्कवंश्ये नरदेवलोके। 6/8 इतने में सब राजाओं का वंश जानने वाले भाटों ने सूर्य और चन्द्र के वंश में उत्पन्न होने वाले उन सब राजाओं की प्रशंसा की। 17. नरपति :-[नृ + अच् + पतिः] राजा। नरपति कुल भूत्यै गर्भमाधत्त राज्ञी। 2/75 वैसे ही रानी सुदक्षिणा ने राजा दिलीप का वंश चलाने के लिए गर्भ धारण किया। नरपतिश्चकमे मृगयारतिं स मधुमन्मधुमन्मथ संनिभिः। 9/48 कामदेव के समान सुन्दर राजा दशरथ ने भी बसंत ऋतु का आनन्द लिया और फिर उनके मन में आखेट की इच्छा होने लगी। नरपति रति वाहयां बभूव क्वचिदसमेतपरिच्छद स्त्रियामाम्। 9/70 राजा को यह आखेट का व्यसन ऐसा लगा कि उन्हें पूरी रात बिना किसी सेवक के और बिना किसी स्त्री के अकेले ही काटनी पड़ी। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy