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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 312 www. kobatirth.org कालिदास पर्याय कोश यों तो जितने हारे हुए राजा थे, वे सभी अज से मन ही मन कुढ़ते थे, किंतु इन्द्राणी के रहने से उनका भी क्रोध ठंडा पड़ गया । 11. क्षितीश :- [क्षि + क्तिन् + ईश: ] राजा । आसमुद्रक्षितीशानामानाकथवर्त्मनाम् । 1/5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन राजाओं का राज्य समुद्र के ओर-छोर तक फैला हुआ था, जिनके रथ पृथ्वी से सीधे स्वर्ग तक आया-जाया करते थे। इत्थं क्षितीशेन वशिष्ठधेनुर्विज्ञापिता प्रीततरा बभूव | 2/67 राजा दिलीप की यह बात सुनकर तो नंदिनी बहुत ही प्रसन्न हुई । इति क्षितीशो नवतिं नवाधिकां महाक्रतूनां महनीयशासनः । 3/69 इस प्रकार राजा दिलीप की आज्ञा कोई टाल नहीं सकता था, उन्होंने निन्यानवें यज्ञों की सीढ़ी सी बना ली थी। तमध्वरे विश्वजितं क्षितीशं निःशेषविश्राणित कोषजातम् । 5/1 जिस समय राजा रघु विश्वजित यज्ञ में सब कुछ दान किए बैठे थे। तस्याः प्रकामं प्रियदर्शनोऽपि न स क्षितीशो रुचये बभूव । 6/44 वैसे ही वह सुन्दर राजा भी इन्दुमती के मन में नहीं जँचा । इत्यचिवानुपहता भरण : क्षितीशं श्लाघ्यो भवान्स्वजन इत्यनुभाषितारम् । 16/86 यह कहकर कुमुद ने वह आभूषण राजा कुश को दे दिया, राजा कुश बोले :आज से आप मेरे आदरणीय संबंधी हुए । 12. क्षितीश्वर : - [क्षि + क्तिन् + ईश्वरः ] राजा । , उसे एकांत तदाननं मृत्सुरभि क्षितीश्वरो रहस्युपाघ्राय न तृप्तिमाययौ । 3 / 3 वैसे ही मिट्टी खाने से रानी सुदक्षिणा का जो मुँह सोंधा हो गया था, - सूँघकर भी राजा दिलीप अघाते नहीं थे । कौशिकेन स किल क्षितीश्वरो राममध्वरविघातशान्तये ! | 11/1 एक दिन विश्वामित्र जी राजा दशरथ के पास आए और उन्होंने कहा कि मेरे यज्ञ की रक्षा के लिए काकपक्ष-धारी राम को हमारे साथ भेज दीजिए । अन्वयुङ्ग गुरुमीश्वरः क्षितेः स्वन्तमित्यलघयत्स तद्व्यथाम् । 11/62 इस पर गुरुजी ने कहा :- चिंता की कोई बात नहीं है, इसका फल अच्छा ही होगा। यह सुनकर राजा दशरथ के मन में कुछ ढाढ़स बँधा। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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