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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 314 कालिदास पर्याय कोश 18. नरलोकपाल :-[नृ + अच् + लोकपाल:] राजा। वैमानिकानां मरुतापमश्यदाकृष्ट लीलान्नरलोकपालान्। 6/1 मंचों पर बैठे हुए राजा ऐसे लग रहे थे, जैसे विमानो पर देवता बैठे हों। 19. नराधिप :-[नृ + अच् + अधिपः] राजा। स्थाने भवानेकनराधिपः सन्नकिंचिनत्वं मखजं व्यनक्ति। 5/16 चक्रवर्ती राजा होते हुए भी यज्ञ में सब कुछ देकर और दरिद्र होकर। समतया वसुवृष्टि विसर्जनैर्नियमनाद सतां च नराधिपः। 9/6 राजा दशरथ सबसे एक सा व्यवहार करते थे, जैसे कुबेर धन बरसाते हैं, वैसे ही वे भी धन बाँटते थे। अथ समाववृते कुसुमैर्नवैस्तामेव सेवितुमेकनराधिपम्। 9/24 उन एकच्छत्र राजा का अभिनंदन करने के लिए नये-नये फूलों की भेंट लेकर। 20. नरेन्द्र :-[नृ + अच् + इन्द्रः] राजा। आपीनभारोद्वहनप्रयत्नाद्गृष्टिगुरुत्वाद्वपुषो नरेन्द्रः। 2/18 नंदिनी अपने थन के भारी होने से धीरे-धीरे चलती थी और राजा दिलीप भारी शरीर होने के कारण धीरे-धीरे चलते थे। नरेन्द्रकन्यास्तमवाप्य सत्पतिं तमोनुदं दक्षसुता इवा बभुः। 3/33 जैसे दक्ष की कन्याएँ चन्द्रमा जैसे पति को पाकर प्रसन्न हुई थीं, वैसे ही राजकुमारियाँ भी रघु जैसे प्रतापी पति को पाकर प्रसन्न हुईं। नरेन्द्रमूलायतनादनन्तरं तदास्पदं श्रीर्युवराजसंज्ञितम्। 3/36 वैसे ही राज्यलक्ष्मी भी बूढ़े राजा दिलीप को छोड़कर धीरे-धीरे रघु पर पहुँच गई। नरेन्द्रसूनुः प्रतिसंहरनिषु प्रियंवदः प्रत्यवदत्सुरेश्वरम्। 3/64 इन्द्र के ये वचन सुनकर राजा दिलीप के पुत्र रघु ने तूणीर से आधे निकाले हुए बाण को फिर उसमें डाल दिया। शरीर मात्रेण नरेन्द्र तिष्ठन्नाभासि तीर्थ प्रतिपादितर्द्धिः। 5/15 हे राजन्! आपने सब धन अच्छे लोगों को दे डाला है और केवल यह शरीर भर आपके पास बचा है। निपेतुरन्तः करणैर्नरेन्द्रा देहैः स्थिताः केवलमासनेषु। 6/11 उसकी सुन्दरता देखते ही सब राजाओं के मन तो उसमें चले गए, केवल उनके शरीर भर मंचों पर रह गए। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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