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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 303 रजोभिरन्तः परिवेषबन्धि लीलारविन्दं भ्रमयां चकार। 6/13 उसके घूमने से भौरे तो इधर-उधर भाग गए, पर उसमें जो पराग भरा हुआ था, उसके फैलने से कमल के भीतर चारों ओर कुण्डली सी बन गई। कुर्वन्ति सामन्तशिखामणीनां प्रभाप्ररोहास्तमयं रजांसि। 6/33 घोड़ों की टापों से उठी हुई धूल से शत्रुओं के मुकुटों की चमक धुंधली पड़ जाती मत्स्यध्वजा वायुवशाद्वि दीर्णेमुखैः प्रवृद्धध्वजिनी रजांसि।7/40 वायु के कारण सेना की मछली के आकार वाली झंडियों के मुँह खुल गये थे, उनमें जब धूल घुस रही थी, तब वे ऐसी जान पड़ती थीं। स्वभर्तृनाम ग्रहणाद्बभूव सान्द्रे रजस्यात्मपरावबोधः। 7/41 धूल इतनी गहरी छा गई थी कि जब दोनों ओर के सैनिक अपने-अपने राजाओं का नाम ले-लेकर युद्ध करते थे, तभी वे अपना-पराया समझते थे। आवृण्वतो लोचनमार्गमाजौ रजोऽन्धकारस्य विजृम्भितस्य। 7/42 आँखों के आगे अँधेरा छा देने वाली और युद्धभूमि में फैली हुई धूल के अँधियारे में। स्वं वपुः स किल किल्विषच्छिदां रामपादरजसामनुग्रहः। 11/34 राम के चरणों की धूल सब पापों को हरने वाली थी, इसलिए उसके छूते ही अहल्या को फिर वही पहले वाला सुन्दर शरीर मिल गया। रजांसि समरोत्थानि तच्छोणित नदीष्विव। 12/82 मानो राक्षसों के रक्त की नदी में रणक्षेत्र से उठी हुई धूल पड़ रही हो। 4. रेणु :-(पुं०) [रीयते: णुः नित्] धूल, धूलकण, रेत। तुल्यगन्धिषु मत्तेभ कटेषु फलरेणवः। 4/47 लौंग के बीज पिसकर वायु के सहारे हाथियों के उन गालों पर चिपक गए, जहाँ उन्हीं के गंध जैसी मद की गंध निकल रही थी। अलकेषु चमूरेणुश्शूर्णप्रतिनिधीकृतः। 4/54 उनके बालों पर रघु की सेना के चलने से उठी हुई जो धूल बैठ गई थी वह ऐसी लगती थी, मानो कस्तूरी का चूरा लगा हुआ हो। वर्धयन्निव तत्कूटानुधूतैर्धातु रेणुभिः। 4/71 मानो अपने घोड़ों की टापों से उठी हुई गेरू आदि धातुओं की लाल-लाल धूल से चोटियों को और भी ऊँची करना चाहते हों। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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