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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 304 कालिदास पर्याय कोश उत्थापितः संयति रेणुरश्वैः सान्द्रीकृतः स्यन्दनवंश चक्रैः। 7/39 युद्ध-क्षेत्र में घोड़ों की टापों से जो धूल उठी, उसमें रथ के पहियों से उठी हुई धूल मिलकर और भी घनी हो गई। सच्छिन्नमूलः क्षतजेन रेणुस्तस्योपरिष्टात्पवनावधूतः। 7/43 पृथ्वी पर इतना रक्त बहा कि नीचे की धूल दब गई और जो धूल उठ चुकी थी, वह वायु के सहारे इधर-उधर फैलकर। गगनमश्वखुरोद्धतरेणुभिसविता स वितानमिवाकरोत्। 9/50 तब उनके घोड़ों की टापों से इतनी धूल उठी कि आकाश में चंदोवा सा तन गया। रेणुः प्रपेदे पथि पङ्कभावं पङ्कोऽपि रेणुत्वमियाय नेतुः। 16/30 मार्ग की धूल कीचड़ बन गई और कीचड़ भी धूल बन गया। रथ 1. रथ :-[रम्यतेऽनेन अत्र वा :-रम् + कथन्] यान, वाहन, युद्धरथ। आसमुद्रक्षिती शानामानाकरथवर्त्मनाम्। 1/5 जिनका राज्य समुद्र के ओर-छोर तक फैला हुआ था, जिनके रथ पृथ्वी से सीधे स्वर्ग तक आया-जाया करते थे। मनोभिरामाः शृण्वन्तौ रथनेमिस्वनोन्मुखैः। 1/39 कहीं तो रथ की गड़गड़ाहठ सुनकर बहुत से मोर अपना मुँह ऊपर उठाकर दुहरे मनोहर। तामवारोहयत्पत्नी रथादवततार च। 1/54 पहले तो उन्होंने अपनी पत्नी को रथ से उतारा और फिर स्वयं भी रथ से उतर पड़े। श्रोत्राभिराम ध्वनिना रथेन स धर्मपत्नी सहितः सहिष्णुः। 2/72 सहनशील राजा दिलीप अपनी पत्नी के साथ जिस रथ पर चढ़कर अयोध्या को चले, उसकी ध्वनि कानों को बड़ी मीठी लग रही थी। दिवं मरुलानिव भोक्ष्यते भुवं दिगन्तविश्रान्तरथो हि तत्सुतः। 3/4 भविष्य में उसका पुत्र भी संपूर्ण पृथ्वी पर उसी प्रकार राज करे, जैसे इन्द्र स्वर्ग पर राज करते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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