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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 203 रघुवंश उसी समय रावण के मुकुट के राक्षसों की लक्ष्मी के आँसू के समान। 4. धनदानुज :-[धन्+अचाद: अनुजः] रावण का विशेषण। निग्रहात्स्वसुराप्तानां वधाच्च धनदानुजः। 12/52 बहन का अपमान और खरदूषण आदि अपने संबंधियों का वध रावण को इतना अपमानजनक जान पड़ा। 5. पौलस्त्य :-[पुलस्तेः अपत्यम्-पुलस्ति+यञ्] रावण का विशेषण। पौलस्त्यतुलितस्यादेरादधान इव ह्रियम्। 4/80 इससे कैलास पर्वत को इस बात की लज्जा हुई, कि एक बार रावण ने मुझे क्या उठा लिया कि सभी मुझे हारा हुआ समझने लगे। तस्मिनवसरे देवाः पौलस्त्योप्लुता हरिम्। 10/5 ठीक उसी समय रावण के अत्याचार से घबराकर देवता लोग उसी प्रकार विष्णु की शरण में गए। शापयन्त्रित पौलस्त्य बलात्कारक चग्रहैः। 10/47 रावण ने उनके जूड़ों को नलकूबर के शाप के डर से, हाथ नहीं लगाया है। तस्योदये चतुर्मूते: पौलस्त्यचकितेश्वराः। 10/73 मानो रावण से डरे हुए कुबेर आदि दिग्पालों ने पृथ्वी पर चार रूपों में आए हुए भगवान को पाकर संतोष की साँस ली हो। दिग्विजूंभित काकुत्स्थ पौलस्त्यजयघोषणः। 12/72 राम और रावण की जय-जयकारों से दिशाएँ फटी पड़ती थीं। ततो बिभेद पौलस्त्यः शक्त्या वक्षसि लक्ष्मणम्। 12/77 तब मेघनाद ने खींचकर लक्ष्मण की छाती में शक्तिबाण मारा। निर्ययावथ पौलस्त्यः पुनयुद्धाय मन्दिरात्। 12/83 जब रावण ने सारा कांड सुना, तब वह अपने राजभवन से निकलकर रणभूमि में आया। तस्य स्फुरति पौलस्त्यः सीतासंगम शशिनि। 12/90 रावण ने बड़ा करके राम की फड़ककर सीता से मिलने की शुभ सूचना देने वाली उस भुजा में। उपनतमणिबंधे मूर्ध्नि पौलस्त्य शत्रोः सुरभि सुरविमुक्तं पुष्पवर्ष पपात। 12/102 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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