SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 182 कालिदास पर्याय कोश मैं सब मोह ताड़कर सीता को वैसे ही छोड़ दूंगा, जैसे पिता की आज्ञा से मैंने राज्य छोड़ दिया था। स शुश्रुवान्मातरि भार्गवेण पितुर्नियोगात्प्रहृतं द्विषद्वत्। 14/46 लक्ष्मण ने सुन ही रक्खा था कि पिता की आज्ञा पाकर परशुराम जी ने अपनी माता को वैसे ही बड़ी निर्दयता से मार डाला था, जैसे कोई अपने शत्रु को मारे। तन्माव्यथिष्टा विषयान्तरस्थं प्राप्तासि वैदेहि पितुर्निकेतम्। 14/72 बेटी यहाँ भी तुम अपने पिता का घर समझो और शोक छोड़ दो। तवोरुकीर्तिः श्वशुरः सखा मे सतां भवोच्छेदकरः पिता ते। 14/74 तुम्हारे यशस्वी श्वसुर जी मेरे मित्र थे और तुम्हारे पिता भी ज्ञानोपदेश देकर बहुत से विद्वानों को संसार के बंधन से छुड़ाते रहते हैं। एकः शंकां पितृवधरिपोरत्यजद्वैन तेयाच्छन्तव्यालामव निमपरः पौरकान्तः शशास। 16/88 इस प्रकार नागराज कुमुद ने त्रिलोकीनाथ विष्णु अर्थात राम के सच्चे पुत्र कुश को अपना संबधी मानकर गरुड़ से डरना छोड़ दिया क्योंकि अब वह उसके संबंधी के पिता का वाहन मात्र था। तेनोरुवीर्येण पिता प्रजायै कल्पिष्यमाणेन ननन्द यूना। 18/2 वैसे ही पुत्र को प्यार करने वाले पिता को पाकर देवानीक भी पिता वाले हुए। पिता पितृणामनृण स्तमन्ते वयस्यनन्तानि सुखानि लिप्सुः। 18/26 अब वे पिता के ऋण से ऋण हो गए और बहुत सुख भोगकर वृद्धावस्था में पुत्र को राज्य देकर। लोकेन भावी पितुरेव तुल्यः संभावितो मौलिपरिग्रहात्सः। 18/38 उस बालक सुदर्शन ने जब सिरपर मुकुट धारण किया, तभी प्रजा ने आँक लिया कि यह पिता के समान ही तेजस्वी होगा। षड्वर्ष देशीयमपि प्रभुत्वात्प्रेक्षन्त पौराः पितृगौरवेण। 18/39 जब वे छ: वर्ष के छोटे राजा हाथी पर चढ़कर राज मार्ग से निकलते थे, तब उन्हें देखकर जनता उनके पिता के समान ही उनका आदर करती थी। तिस्त्रस्त्रिवर्गा धिगमस्य मूलं जग्राह विद्याः प्रकृतीश्च पित्र्याः। 18/50 तीनों विद्याओं को इतनी शीघ्रता से सीख लिया मानो, पूर्व जन्म में ही वे उन्हें पढ़ चुके हों। साथ ही अपने पिता की प्रजा को भी उन्होंने वश में कर लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy