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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रघुवंश www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्र 1. अपत्य : - [ न पतन्ति पितरोऽनेन - नञ् + पत्+यत् ] संतान, बच्चे बेटा या बेटी । अपत्यैरिव नीवारभागधेयोचितैर्मृगैः । 1/50 मृगों को भी ऋषि पत्नियों के बच्चों के समान तिन्नी के दाने का अभ्यास पड़ गया था। इतो भविष्यत्यनघप्रसूतेर पत्य संस्कारमयो विधिस्ते । 14 / 75 तुम्हारी पवित्र सन्तान के जात कर्म आदि संस्कार मैं यहीं करूँगा । 2. आत्मज : - [ अत्+मनिण्+ज: ] पुत्र । तस्यामात्मा नुरूपायमात्मजन्मसमुत्सुकः । 1/33 उनकी बड़ी इच्छा थी कि मेरी प्यारी पत्नी से मेरे जैसा पुत्र हो । 183 अतः पिता ब्रह्मण एव नाम्ना तमात्मजन्मानमजं चकार । 5/36 तो ब्राह्म मुहूर्त में जन्म होने से पिता ने ब्रह्मा के नाम पर पुत्र का नाम अज रक्खा। सूतात्मजाः सवयसः प्रथित प्रबोधं प्राबोधयन्नुषसि वाग्मिरुदारवाचः । 5/65 दिन निकलते ही उनकी समान अवस्था वाले और मधुर बोलने वाले सूतों के पुत्र यह स्तुति गा-गाकर बुद्धिमान अज को जगाने लगे। अतो नृपाश्चक्षमिरे समेताः स्त्रीरत्नंलाभं न तदात्मजस्य । 7/34 इसीलिए वे यह भी नहीं सह सके कि रघु का पुत्र हम लोगों के रहते हुए स्त्रियों रत्न इन्दुमती को लेकर चला जाय। For Private And Personal Use Only रघुरश्रुमुखस्य तस्य तत्कृतवानीप्सितमात्मजप्रियः । 8/13 अपने पुत्र अज को रघु बहुत प्यार करते थे, इसलिए अज की आँखों में आँसू देखकर वे रुक तो गए। समदुःखसुखः सखीजनः प्रतिपच्चन्द्र निभोऽयमात्मजः । 8 / 65 तुम्हारे सुख दुःख की साथी ये सखियाँ खड़ी हैं, शुक्ल पक्ष की चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुख वाला तुम्हारा पुत्र भी यहीं है। ता नराधिपसुता नृपात्मजैस्ते च ताभिरगमन्कृतार्थताम् । 11 /56 उन चारों राजकुमारों को पाकर राजकन्याएँ और राजकन्याओं को पाकर राजकुमार निहाल हो गए। पुत्रस्तथैवात्मज वत्सलेन स तेन पित्रापितृमान्बभूव । 18 / 11
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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