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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 140 कालिदास पर्याय कोश आवृणोदात्मनो रन्धं रंधेषु प्रहरनिपून्। 17/61 उन्होंने शत्रुओं के दोषों का लाभ उठाकर उन्हें नष्ट कर दिया और अपने दोषों को दूर कर लिया। 6. विपक्ष :-[विरुद्धः पक्षो यस्य प्रा० ब०] शत्रु, विरोधी, प्रतिरोधी। तथापि शस्त्रव्यवहार निष्ठुरे विपक्षभावे चिरमस्य तस्थुषः। 3/62 शत्रु के वज्र की चोट से क्षणभर में संभलकर रघु फिर लड़ने के लिए आ डटें। गुणासतस्य विपक्षेऽपि गुणिनो लेभिरेऽन्तरम्। 17/35 अतिथि के गुणों ने शत्रुओं के हृदय में भी घर कर लिया था और शत्रु भी उनके गुणों का लोहा मानते थे। 7. शत्रु :-[शद्+त्रुन्] दुश्मन, बैरी, प्रतिपक्षी। प्रत्यर्पिता: शत्रुविलासिनीनामुन्मुच्य सूत्रेण विनैव हाराः। 6/28 मानो इन्होंने शत्रुओं की स्त्रियों के गले से मोतियों के हार उतार कर, उन्हें बिना डोरे वाले (आँसुओं के) हार पहना दिए हों। आसेदुषी सादितशत्रुपक्षं बालामबालेन्दुमुखीं बभाषे। 6/53 पूनों के चन्द्रमा के समान मुखवाली इंदुमती को उस राजा के पास ले गई, जिन्होंने अपने शत्रुओं को नष्ट कर डाला था। शंख स्वनाभिज्ञतया निवृत्तास्तां सन्न श ददृशुः स्वयोधाः। 7/64 शंख की ध्वनि को पहचानकर अज के योद्धा लौट आए। सोते हुए शत्रुओं के बीच अज उन्हें ऐसे लगे। इति शत्रुषु चेन्द्रियेषु च प्रतिषिद्ध प्रसरेषु जाग्रतौ। 8/23 अज ने अपने शत्रुओं को बढ़ना रोककर और रघु ने इन्द्रियों को वश में करके अपनी-अपनी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली। निर्जितेषु तरसा तरस्विनां शत्रुषु प्रणति रेव कीर्तये। 11/89 जब कोई पराक्रमी अपने बल से अपने शत्रु को जीत लेता है, तब यदि वह नम्रता भी दिखावे, तो उसकी कीर्ति ही बढ़ती है। सभाजनयोपगतान्स दिव्यान्मुनीन्पुरस्कृत्य हतस्य शत्रोः। 14/18 तब राम ने उन अगस्त्य आदि ऋषियों का सत्कार किया, जो उन्हें बधाई देने आए थे, फिर उन्हें अपने शत्रु रावण का जन्म से मृत्यु तक का वृतांत सुनाया। सोभूद्भग्नव्रतः शत्रूनुद्धृत्य प्रतिरोपयन्। 17/42 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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