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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश रिपुनियां सांजनवाष्पसेके बन्दीकृतानामिव पद्धती द्वे । 6/55 मानो ये शत्रुओं की उस राज्यलक्ष्मी के आने की दो पगंडडियाँ हैं, जो उन्होंने शत्रुओं से छीन ली हों और जिसके कजरारे नेत्रों से बहे हुए आँसुओं के कारण ये काले पड़ गए हों । तुरंगम स्कन्धनिषण्णदेहं प्रत्याश्वसन्तं रिपुमाचकांक्ष। 7/47 एक घुड़सवार ने अपने शत्रु घुड़सवार पर पहले चोट की। चोट खाते ही वह घोड़े के कंधे पर झुक गया और उसमें इतनी भी शक्ति न रही कि सिर तक उठा सके। 139 आकर्णकृष्टा सुकृदस्य योद्धुमर्वीव बाणान्सुषुवे रिपुघ्नान् । 7/57 वरन् ऐसा जान पड़ता था कि वे जब कान तक धनुष की डोरी खींचते थे, तब उसी में से शत्रुओं का नाश करने वाले बाण निकलते चले जा रहे थे। अत्यारूढं रिपोः सोढ़ं चन्दनेनेव भोगिनः । 10/42 । उस दुष्ट का दिन-दिन ऊपर चढ़ना उसी प्रकार सहा है, जैसे अपने ऊपर चढ़ते हुए साँप को चंदन का पेड़ सह लेता है। विभ्रतोऽस्त्रम् चलेऽप्यकुंठितं द्वौ रिपू मम मतौ समागसौ । 11/74 जिस परशुराम के अस्त्र पहाड़ों से टकराकर कुंठित नहीं होते, उसके दो ही शत्रु आज तक समान अपराध करने वाले हुए हैं। निष्प्रभश्च रिपुरास भूभृतां धूमशेष इव धूमकेतनः । 11 /81 वैसे ही क्षत्रियों के शत्रु परशुरामजी उसी अग्नि के समान निस्तेज हो गए, जिसमें केवल धुआँ भर रह गया हो । सीतां हित्वा दशमुखरिपुर्नोपयेमे यदन्यां । 14 / 87 राम ने सीता को त्याग कर किसी दूसरी स्त्री से विवाह नहीं किया । सनिवेश्यकुशावत्यां रिपुनागांकुश कुशम् । 15 / 97 शत्रुरूपी हाथियों के लिए अंकुश के समान भयदायक कुश को कुशावतीका राज्य दे दिया । For Private And Personal Use Only अधोपशल्ये रिपुमग्न शल्यस्तस्याः पुरः पौरसखः स राजा । 16/37 शत्रुविनाशक प्रजा - हितैषी राजा ने नगर के आस-पास के स्थानों में ठहरा दिया। अतः सोऽभ्यन्तरान्नित्यान्षट् पूर्वभजय द्रिपून् । 17/45 इसलिए उन्होंने शरीर के भीतर सदा रहने वाले काम आदि छओं शत्रुओं को पहले ही जीत लिया।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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