SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 137 उन्होंने धनुष तो दूर फेंका और अपने प्रबल शत्रु रघु को मारने के लिए। रघोरमिभवाशंकि चुक्षुभे द्विषतां मनः। 4/21 उधर शत्रुओं के मन में यह जानकर खलबली मच गई, कि अब न जाने कब रघु चढ़ाई कर बैठे। द्विषां विषा काकुत्स्थस्तत्र नाराचदुर्दिनम्। 4/41 वैसे ही रघु ने भी बाणों की वर्षा से स्नान करके विजय पाई। ततः परं दुष्प्रसहं द्विषद्भिर्नृपं नियुक्ता प्रतिहारभूमौ। 6/31 वहाँ से आगे बढ़कर प्रतिहारी सुनंदा ने एक दूसरे राजा को दिखाया, जिससे सब शत्रु काँपते थे। कश्चिद्विषत्खड्गहृतोत्तमाँगः सद्यो विमान प्रभुतामुपेत्य। 7/51 एक योद्धा का सिर शत्रु की तलवार से कट गया, युद्ध में मृत्यु होने से वह देवता हो गया और विमान पर चढ़कर। तस्तार गां भल्लनिकृतकण्ठैहुँकार गर्भेषितां शिरोभिः। 7/58 जो शत्रु राजा हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे, उनके सिर काट-काट कर अज ने पृथ्वी पाट दी। अकरोद चिरेश्वरः क्षितौ द्विषदारंभफलानि भस्मसात्। 8/20 अज ने पृथ्वी पर शत्रुओं की सब चालें नष्ट कर डाली। सशरवृष्टिमुचा धनुषा द्विषां स्वनवता नवतामरसाननः। 9/12 वैसे ही नये कमल के समान सुदंर मुख वाले दशरथजी ने, अपने बाण बरसाने वाले धनुष से शत्रुओं को मारकर बिछा दिया। रन्धान्वेषणदक्षाणां द्विषाममिषतां ययौ। 12/11 दशरथ जी के शत्रु तो ऐसे अवसर की ताक में ही थे, उन्होंने झट धावा बोल दिया। ते रामाय वधोपायमाचरव्युर्विबुध द्विषः। 15/5 तब मुनियों ने राम को बताया कि जब तक शत्रु लवणासुर के हाथ में भाला रहेगा, तब तक उसका हारना कठिन है। वयसां पंक्तयः पेतुर्हतस्योपरि विद्विषः। 15/25 मरे हुए शत्रु के ऊपर गिद्ध आदि पक्षी टूट पड़े। वशी सुतस्तस्य वंशवदत्वात्स्वेषा मिवासी द्विषताम पीष्टः। 18/13 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy