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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 136 कालिदास पर्याय कोश अथ जानपदो विप्रः शिशुमप्राप्तयौवनम्। 15/42 एक दिन उसी जनपद का रहने वाला एक ब्राह्मण अपने मरे हुए नवयुवक पुत्र को। 4. वेदविद :-[विद्+घञ्, अच् वा+विद्] वेदविशारद ब्राह्मण। इत्थं द्विजेन द्विजराजकान्ति रावेदितो वेदविदां वरेण। 5/23 जब वैदिक ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ कौत्स ने यह कहा तब चंद्रमा के समान सुंदर रघु बोले-आप जैसा वेद पाठी ब्राह्मण। द्विष 1. अराति :-शत्रु, दुश्मन। रामस्तुलित कैलासमरातिं बहमन्यत। 12/89 जिसने कैलास पर्वत को उँगलियों पर उठा लिया था, उसे देखकर राम ने समझा यह कुछ कम पराक्रमी नहीं है। 2. अरि :-[ऋ+इन्] शत्रु, दुश्मन। . अथाथर्वनिधेस्तस्य विजितारिपुरः पुरः। 1/59 राजा दिलीप ने जहाँ अपनी वीरता से शत्रुओं के नगर जीते थे और धनपति बने थे, उन्होंने अथर्ववेद के रक्षक वशिष्ठ जी के उत्तर में। तव मंत्रकृतो मत्रै रात्प्रशमितारिभिः। 1/61 आप मंत्र के रचयिता हैं। आपके मंत्र तो दूर से ही शत्रुओं को नष्ट कर देते हैं। तेन सिंहासनं पित्र्यमखिलं चारिमण्डलम्। 4/4 राजा रघु ने पिता के सिंहासन पर और अपने शत्रुओं पर एक साथ अधिकार कर लिया। स प्रतस्थेऽरिनाशाय हरिसैन्यैरनुदुतः। 12/67 वे वानरों की अपार सेना लेकर शत्रुओं का संहार करने लगे। प्रायः प्रताप भग्नत्वादरीणां तस्य दुर्लभः। 17/70 वैसे ही प्रतापी राजा अतिथि से लड़ने को कोई शत्रु साहस ही नहीं करता था। जितारिपक्षोऽपि शिलीमुखैर्यः शालीनतामव्रजदीयमानः। 18/17 यद्यपि उन्होंने बाणों से शत्रुओं को जीत लिया फिर भी वे स्वयं नम्र ही रहे। 3. द्विष :-[द्विष्+क्विप्] विरोधी, शत्रुवत्। स चापमुत्सृज्य विवृध मत्सरः प्रणाशनाय प्रबलस्य विद्विषः। 3/60 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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