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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश 5. जल :-[जल्+अक्] पानी। जलाभिलाषी जलमाददानं छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्। 2/6 जब वह जल पीने की इच्छा करती, तभी राजा को भी प्यास लग आती थी, वे छाया के समान ही उसके पीछे चल रहे थे। तदंगनिष्यंदजलेन लोचने प्रमृज्य पुण्येन पुरस्कृतः सताम्। 3/41 उन्होंने तत्काल नंदिनी के मूत्र को अपनी आँखों से लगाया। तान्युञ्छषष्ठांकित सैकतानि शिवानि वस्तीर्थजलानि कच्चित्। 5/8 उन नदियों का जल तो ठीक है न, जिनकी रेती पर आप लोग अपने चुने हुए अन्न का छठा भाग राजा का अंश समझकर रख छोड़ते हैं। तस्यैकनागस्य कपोलभित्त्योर्जलावगाह क्षण मात्र शांता। 5/47 यद्यपि नदी में नहाने से उस हाथी के माथे का सब मद जल से धुल चुका था। उष्णत्वमग्न्यात्यसंप्रयोगाच्छैत्यं हि यत्सा प्रकृतिर्जलस्य। 5/54 जल तो आग की गर्मी पाकर ही गर्म होता है, उसका अपना स्वभाव तो ठंडा ही होता है। कलिंदकन्या मथुरां गतापि गंगोर्मिसंसक्तजलेव भाति। 6/48 उस समय मथुरा में भी यमुना का रंग ऐसा प्रतीत होता है, मानों वहीं पर उनका गंगाजी की लहरों से संगम हो गया हो। अनुपास्यसि बाष्वदूषितं परलोकोपनतं जलांजलिम्। 8/68 अब तुम आँसुओं के जल से मिली हुई गेंदली जलांजलि को परलोक में कैसे पी सकोगे। तेनावतीर्य तुरगात्प्रथितान्वयेन पृष्टान्वयः स जलकुंभनिषण्णदेहः। 9/76 राजा दशरथ ने घोड़े पर से उतरकर घड़े पर झुके हुए मुनि पुत्र से उसका वंश परिचय पूछा। तावदाशु विदधे मरुत्सखैः सासपुष्पजलवर्षिभिर्घनैः। 11/3 इतने में वायु ने फूल और बादलों ने जल लाकर सड़कों पर बरसा दिया। अमी शिरोभिस्तिमयः सरंधैरूज़ वितन्वन्ति जलप्रवाहन्। 13/10 फिर मुँह बंद करके अपने सिर के छेदों से पानी की जल-धाराएँ छोड़ने लगते समुद्रपन्योर्जलसंनिपाते पूतात्मनामंत्र किलाभिषेकात् 13/58 For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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