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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 90 www. kobatirth.org ग्रह 1. ग्रह :- पकड़ना, लेना, ग्रहण करना, लेना । अमोघाः प्रतिग्रह्णन्तावर्ध्यनुपदमाशिषः । 1/44 3. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश ब्राह्मणों ने पहले तो अर्ध्य भेंट करके उनकी पूजा की और फिर उनको ऐसे आशीर्वाद दिए जो कभी निष्फल हो ही नहीं सकते थे । तयोर्जगृहतुः पदान्राजा राज्ञी च मागधी । 1/57 राजा दिलीप और मगध की राजकुमारी सुदक्षिणा ने चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया। तदुपस्थितमग्रहीदजः पितुराज्ञेति न भोगतृष्णया । 8/2 उसी राज्य को अज ने केवल पिता की आज्ञा मानकर ही स्वीकार किया, भोग की इच्छा से नहीं । पश्चाद्वनाय गच्छेति तदाज्ञां मुदितोऽग्रहीत्। 12/7 जब उनसे कहा गया कि वन चले जाओ, तब राम ने इस आज्ञा को हँसते-हँसते स्वीकार कर लिया । अन्वग्रहीत्प्रणमतः शुभदृष्टि पातैर्वार्तानुयोग मधुराक्षरया च वाचा। 13/71 राम ने प्रेम भरी आँखों से मधुर भाषा में उनसे कृपापूर्वक कुशल मंगल पूछा। न्यस्ताक्षराम क्षरभूमिकायां कार्त्स्न्येन गृह्णाति लिपिं न यावत् । 18/46 अभी वे पटिया पर भली भाँति अक्षर भी लिखना नहीं सीख पाए थे। 2. दद् :- देना, प्रदान करना । For Private And Personal Use Only धनुरधिज्यमनाधिरूपाददे नरवरो रवरोषितकेसरी । 9/54 तब उस सुंदर स्वस्थ राजा ने अपना वह चढ़ा हुआ धनुष उठाया, जिसकी टंकार सुनकर सिंह भी गरज उठे । शीर्षच्छेदं परिच्छद्य नियंता शस्त्रमाददे | 15 / 51 राम ने निश्चय कर लिया कि इसका सिर काटना ही होगा, उन्होंने हाथ में शस्त्र उठा लिया। दा: - देना, स्वीकार करना । मायाविभिरनालीढमादास्यध्वे निशाचरैः । 10 / 45 उसे अब राक्षस लोग छीनकर नहीं खा सकेंगे, सब आप लोगों को ही मिलेगा।
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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