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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 89 रघुवंश 4. सित :-[सो(सि)+क्त] सफेद। उपगतोऽपि च मंडलनाभितामनुदितान्यसितातपवारणः। 9/15 चारों ओर के राजाओं का मंडल उनके हाथ में आ गया, जिससे वे अग्नि और चंद्रमा के समान तेजस्वी लगने लगे। गौरी 1. अद्रितनया :-[अद्+क्रिन्+तनया] आदि पार्वती। अथैनमनेस्तनया शुशोच सेनान्यमालीढमिवासुरास्त्रैः। 2/37 बस, इतने पर ही पार्वतीजी को ऐसा शोक हुआ, जैसा दैत्यों के बाणों से घायल स्वामि कार्तिकेय को देखकर हुआ था। उमा :-[ओ: शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा+क वा तारा०] पार्वती, उमा। उमावृषांकौ शर जन्मना यथा यथा जयंतेन शची पुरंदरौ। 3/23 जैसे कार्तिकेय के समान पुत्र को पाकर शंकर और पार्वती, और जयन्त जैसे प्रतापी पुत्र को पाकर इन्द्र और शची प्रसन्न हुए थे। 3. गौरी :-[गौर ङीष्] पार्वती। गंगा प्रपातांत विरूढशष्पं गौरीगुरोर्गह्वरमाविवेश। 2/26 वह झट हिमालय की उस गुफा में बैठ गई, जिसमें गंगाजी की धारा गिर रही थी और जिसके तट पर घनी हरी-हरी घास खड़ी हुई थी। ततो गौरी गुरुं शैलमारुरोहाश्व साधनः। 4/71 वहाँ से अपने घोड़ों की सेना लेकर हिमालय पहाड़ पर चढ़ गए। 4. पार्वती :-[पार्वत+ङीप्] हिमालय की पुत्री पार्वती, दुर्गा का नाम। जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ। 1/1 मैं संसार के माता-पिता पार्वतीजी और शिवजी को प्रणाम करता हूँ। 5. स्कंदमाता :-[स्कन्द्+अच्+माता] कार्तिकेय की माता पार्वती। यो हेमकुंभस्तननिः सृतानां स्कंदस्य मातुः पयसां रसज्ञः। 2/36 स्वयं पार्वतीजी ने अपने सोने के घट रूपी स्तनों के रस से सींच-सींच कर इसे इतना बड़ा किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020426
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size18 MB
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