SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिर्विज्ञानशब्दकोषः तदुक्तं भास्करण‘समेन केनाप्यपवर्त्य हारभाज्यौ भवेद्वा सति सम्भवे तु। इति ली०व। अपवर्तितप०१-अपवर्तित: (त्रि०)। तथा च भास्कर:'मिथो हराभ्यामपवर्तिताभ्यां यद्वा हरांशौ सुधियात्र गुण्यौ। इ०ली०ब०। सवर्णनप०२-सवर्णनम् (न०)। तदुक्तं भास्करण'लवा लवघ्नाश्च हरा हरघ्ना भागप्रभागेषु सवर्णनं स्यात्। इति ली०व०। अंशप०३-अंश: (पुं०), लव: (पुं०), भाज्याङ्कः (पुं०)। राशिप०-राशि: (पुं०), पुञ्ज: (पुं०), समूहः (पुं०)। हरप०५-छिद्, छेदः (पुं०) छेदनम् (न०), भाजकः, विभाजकः, हर:, हारश्चैते पुंसि। समच्छेदप०६-समच्छिद्, समच्छित्ति: (स्त्री०), समच्छेदः (पुं०), छेदसाम्यम् (न०)। उक्तं च भास्करणअन्योन्यहाराभिहतौ हरांशौ राश्योः समच्छेदविधानमेवम्। मिथो हराभ्यामपवर्तिताभ्यां यद्वा हरांशौ सुधियात्र गुण्यौ।' इति लीलावत्याम्। शम्भुहोराप्रकाशेऽपि'निघ्नावन्योन्यश्च हारैर्हरांशावेवं राश्योश्छेदसाम्यं भवेद्वा। सच्छिष्याणां सम्यगेवं मयात्र बोधायैतत्प्रोक्तमन्ततर्दशासु।। इति पुञ्जिराजः। वर्गपर्याया:-कृति: (स्त्री०), वर्गः (पु०), समद्विघात: (पुं०), (सदृशद्विराशिघातो: वा स्वगुणोऽङ्को वर्ग इत्यर्थः)। वर्गानयनविधिं प्राह भास्कर:'समद्विघात: कृतिरुच्यतेऽथ स्थाप्योऽन्त्यवों द्विगुणान्त्यनिघ्नाः। स्वस्वोरिष्टाच्च तथापरेऽङ्कास्त्यक्वाऽन्त्यमुत्सार्य पुनश्च राशिम्।। इ०ली०व०। वर्गसंख्यायामुपरि विषम (1) सम (-) रेखास्थानप्रकार उक्तो ग्रन्थान्तरे अन्त्यं यावदिहेच्छाङ्कादूर्ध्व (1) तिर्यस्थ (-) रेखया। संज्ञ: स्थानाङ्ककानां च विषमाख्यं समं क्रमात्।।' इति। यथा न्यासः-२५७८ वर्गमूलपर्यायाः-पद्म, मूलम्, वर्गमूलं चैते क्लीबे। वर्गमूलानयनप्रकारं प्राह भास्कर:'त्यक्त्वाऽन्त्याद्विषमात्कृतं द्विगुणयेन् मूलं समे तद्धृते, १. पलंटी हुई या बदली हुई संख्या। २. अंशों से अंशों को गुणना एवं हरों से हरों को गुणना उसे 'सवर्णन' कहते हैं। ३. भिन्न की लकीर के ऊपर की संख्या या राशि। ४. भिन्न की लकीर के ऊपर तथा नीचे की संख्या, ५. भिन्न की लकीर के नीचे की संख्या। ६. भिन्न की लकीर के नीचे की गुणी हुई समान संख्या। For Private and Personal Use Only
SR No.020421
Book TitleJyotirvignan Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurkant Jha
PublisherChaukhambha Krishnadas Academy
Publication Year2009
Total Pages628
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy