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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्छवसमय मनुष्योंके बाहुल्यसें उस नगरका मालिक मुगलका पुत्र बाहनसें पडके मरगया तब श्रावक सर्व खेदातुरभया गुरूमहाराजको वीनती करी तव गुरूमहाराज यह वातसुनके, जिनमतकी प्रभावनाके वास्ते व्यंतरप्रयोगकरके ६ मास तक मरेभए मुगलपुत्रको जीवाया, तथा नागदेवनामश्रावक, अंबड इति दूसरा नाम, एकदा गिरनार पर्वतपर तीन उपवास करके अंबिकाकों आराधन करके कहाकि हे माताजी इस समयमें भरत क्षेत्रके विषे युगप्रधानपदधारककोणमूरिहै, जिनकों में अपने गुरूपणे स्थापनकरूं ऐसा पूछा तब अंबिकादेवी तिसके हाथमे सुवर्ण अक्षरोंसें एक श्लोकलिखा दासानुदासा इव सर्वदेवा, यदीयपादाब्जतले लुठन्ति ॥ मरुस्थली कल्पतरुास जीयात् , युगप्रधानोजिनदत्तमूरिः १ इसकाव्यकों जो वाचेंगे उनकोयुगप्रधानजाणना वाद नागदेवश्रावक ठिकाणे ठिकाणे बोहोतसूरिकोंहाथदिखावे, परंतु कोईभीअक्षरवाचणको समर्थनहिभए, पीछे एकदा वह श्रावक पाटणनगरमें तांबावाडापाडेकेउपाश्रयमें श्रीजिनदत्तसूरिजीके पास आके हाथदिखलाया, तब गुरुमहाराज उसके हाथमें लिखितस्वर्णाक्षर ऊपर वासचूर्णडालके शिष्यकों आज्ञा दीवी तब शिष्यनें उनहरफोंडु वाचे, जब नागदेवश्रावक परमभक्तिवंतभया, इसमुजब कलिकालमें युगप्रधानपदधारक श्रीगुरूमहाराजभए, एकदा व्याख्यानकरतेथके श्रीगुरू महाराजने विद्याबलसें अपना स्मरण करताहुवा श्रावकका जहाज डूबता जानके तत्काल जहाजकों देवबलसें समुद्रकेपारउतारा, For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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