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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० धर्मकिचिंताकरणेमे समर्थभये, अर्थात् सर्वधार्मिक क्रिया प्रवतेन प्रवर्तीवनके अधिकारी भये, और उत्सर्ग अपवाद खसमयपरसमय सम्यविधिवादके श्रीगुरुमुख गृहीत वाचनासे यथार्थ अधिकारी भये, वाद आचार्यपदकों प्राप्तहोकर विशेष वीरशासन जैनधर्मकी प्रभावना और कालिकसू रिवत् करके सद्गतिको प्राप्त भये, वाद परचा पूरक जिसतरह भये और संक्षिप्त जन्मादिसंबंध इसतरह दृष्टिगोचर होवे है, तथाहि-श्रीजिनकुशसरिः महाशासन प्रभावक हूवे, तिणोंका जन्मनगर समियाणा, गोत्रछाजेहड, पिता जिल्हागर मंत्री, माता जयतश्री, संवत् १३३० मे जन्म, संवत् १३४७ दीक्षा, संवत् १३७७, जेष्ठवदि एकादशीके दिन श्रीराजेंद्राचार्य सूरिमंत्र देके, आचार्यपदमें स्थापे, तब पाटणके वसणेवाले साहतेजपाल वस्तपालने नंदीमहोच्छव करा, २४०० चोवीससैं साधु साधवी भणी, ७०० सातवें वेषधारी जैनपंडितादिकको वस्त्रादिक दीया, तथा तिस अवसरमे दिल्लीनगरके रहनेवाले महतीयाण गोत्रीय, विजयसिंह श्रावक उहां आके बहोत द्रव्य खरचकरके नंदी महोच्छवकरा, तथा संवत् १३८० साह तेजपाल वस्तपालने निकाला संघके साथ सेजेतीर्थ गए, गुरू महाराज मानतुंगनामें खरतर वसीके मंदिरमें २७ सत्तावीस अंगुलप्रमाणे श्रीअदिनाथ विवकीप्रतिष्ठाकरी, तथा भीमपल्हिनगरमें भुवनपालने वनवाया ७२ बहोत्तर जिनालय मंडित श्रीवीरखामीके मंदिरकी प्रतिष्ठा करी तथा जेशलमेरनगरके किल्लेमें, जसधवलने मंदिर बनवाया श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथस्वामीजी लोद्रवपुरमें वि. सं. २ के प्रतिष्ठित थे उनकुं For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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