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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ श्रीतिदान देके विसर्जन करणा वाद गर्भपोसण दोहदादि अधिकार यावत जन्माधिकार बधाईदेणा दासित्वका दूरकरणा वाद नगरकी सोभा करणा वगेरा पुत्रजन्मयोग्य दसदिनपर्यंत कुलस्थिति क्रमागत मर्यादा करे, वाद सूतक निकालके भोजनादि सर्व सामग्री तयार करवाके यथायोग्य भोजनादि कराके तांबूलादि वस्तू देके सबका सत्कार सन्मान करके सर्व कुंटुंबादिक लोकोंके समक्ष नामस्थापन अवसरमे बालकके माता पिता जयतश्री और जिल्हागर मंत्री अभिप्राय मनोरथादिक कहके, इसतरे कहे कुसलचंदुत्ति होउ - कुमारे नामेणं इत्यादि, अहो लोको इस हमारे वालकका नाम कुशलचंद्र कुमार ऐसा होवो, इसतरे बालकनाम कुशलचंद्र करके स्थापे, वाद सबहि लोक उस बालकको कुशलचंद्र इसनामसें बोलावे, बाद कुशलचंद्र कुंमरकी प्रतिपालना सर्वकलादिकका ग्रहण यावत् यौवन अवस्थाकी प्राप्तिपर्यंत देशकालादिके अनुमानमे स्वमका प्रभाव और वर्णननका अधिकार उत्त्क्षप्त अध्ययनगत मेघकुमार चरित्र के सदृश पूर्वोक्त अधिकार भावनकरणा, इसीतरह आगे भी धर्माचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिजीका आगमन और वर्धापन, दानदेणा बाद राजा मंत्री समियाणा गाम संबंधि परषदका निकलना और श्रीकुशलचंद्र कुंमरका निकलना और धर्मदेशना प्रतिबोधादिस्वरूप ranate प्राप्ति और चरित्रविषयि गुरुदत्त शिक्षण यावत श्रुतादि अभ्यासके लिये श्रुतधर गीतार्थीको समर्पण यावत गीता - र्थत्वपर्णेकी प्राप्तिपर्यंत मेघकुमारवत् भावना करणा, वाद क्रमशः यथाविधि गणिआदिपद और युवराजपदको प्राप्तहोकर सर्वगच्छ For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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