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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ रहता था, तिस के सर्व शुभलक्षण संपन्नाविनीता पतिभक्ता श्रेष्ठवंशमे है उत्पत्ती जिसकी एसी और शीलादि प्रधान गुणोंको धारन करनेवाली श्रीमती जयश्री नामें प्रधान स्त्री है, इनदोनों स्त्री भरतारनें एकदा श्री जिनचंद्रसूरिजी विहारक्रमसें विचरते हुवे वहां पर पधारे तब सर्वलोक वांदणेकों गये अपनी अपनी ऋद्धिका विस्तार करके, बाद मे सर्व आई हुई परषदाकों प्रधान धर्म देशनाद, वादमे यथा शक्ति व्रत पचखाणादिक ग्रहण किये, वादमे, स्त्री सहित मंत्रीनेंभी सम्यक्त सहित श्रावक धर्म शुद्ध मनसें ग्रहण किया, वादमंत्री वगेरा सर्व लोक जिस दिशासे आये थे, उसी दिशामें पीच्छे गये, वाददिल्ली चितोड अजमेर मंडोवर इन ४ महाराजाओं करके सेवित है चरण कमल जिनोंके ऐसे युगप्रधान श्रीमजिनचंद्रसूरिजी महाराज भव्योको उपगार करनेके लिये अन्यत्र विहारकर गये, वाद समियाणा गामवासी यथा शक्तित्रतादिक ग्रहण करणेवाले सर्वलोक अपनी अपनी प्रतिज्ञा माफक सुखसमाधे धर्म ध्यान करते हुवे रहे है, और मंत्री भी समाधि धर्मध्यान करता हूवा रहे है, इसमें एकदा कोइ पुन्यवान जीव देवलोकसें चवके जपतश्रीकी कुक्षीरूप सरोवरमे राजहंसकी तरह आकर उत्पन्न भया तब जयतश्री आधीरात्रिके समे अपने वास भवनमे सेजऊपर कुछ सोती कुछ जागतीहुइ, इन्द्रध्वज देखके जगी ओरशीघ्र ऊटी, ऊठकर के, जहां पर जिल्हागर मंत्री सोता है वहां आके जिल्हागर मंत्रीको कोमल वाणी जगावे जगाके पूर्वोक्त महास्वप्न सुगावे वादने महास्वमका अर्थ और फल पूछे वादमें जिल्हागर मंत्री महास्वनका For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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