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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७ अर्थ और फल विचारे वाद जिल्हागर मंत्री अपने स्वभाविक बुद्धि विज्ञानके अनुसार उस महास्वमका अर्थ और फल विचारके, अर्थ और फल अछीतरे ग्रहण करके, श्रीजिल्हागर मंत्री कोमल वाणीसें इसतरे बोलाकि हे प्रिये यह स्वप्न तेने बहुतहि अछा देखाहै, हे प्रिये यह महास्वमहै, धन धान्य मंगल कल्याण निरुपद्रव आरोग्य तुष्टि पुष्टि दीर्घआयु वगेरा करनेवाला है, और हे प्रिये इस महास्वमके प्रभावसें अर्थादिकका लाभहोगा, और हे प्रिये इस स्वामके प्रभावसें लक्षण व्यंजनादि युक्त, और हीन नहिं परिपूर्ण पांच इन्द्रियरूप शरीरवाला और चंद्रके जैसा सोम्य आकरावाला और सूर्यके जैसा तेजस्वी कमनीय प्यारादर्शन जिसका और प्रधान रूपवाला ऐसा नवमहिना साढीसातदिन ऊपर होनेपर सुकुमालादिगुणविशिष्ट हे प्रिये तें पुत्रकों जनमेगी, और वह पुत्र जब बाल भावको छोडेगा, तब विज्ञानमात्र देखनेसें हि जानेगा, सर्व विद्याकलामें निपुण होगा, याने कुशल होगा, और जब यौवन अवस्था प्राप्त होगा, तब शूरवीर विक्रान्त होगा, और परकीय भूमीको खिंचकर अपणे वशमे करेगा, और विरोधिराजा वगेरा शत्रुओंको जीतकर अपणे वशमे करेगा, और दानादि ४ प्रकार करके परिपूर्ण होगा, और त्यागी भोगी शूरवीर होगा, और राजाओंका राजा अर्थात् मंडलीक राजा होगा, अथवा भावितात्मा अणगार होगा, अर्थात् युगप्रधानके गुणोंको धारण करनेवाला युगप्रधान आचार्य होगा, या, सदृश होवेगा, इत्यादि स्वमार्थ फल श्रवणकरके हरखके वसमें जिसके शरीरमे सर्व रोमराजी विकसित भइ, और नेत्रमुखभी For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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