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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ प्रथम श्रीमजिनदत्तसूरीश्वरजीसें राजगच्छ उत्पन्न भयाथा, और बादमें युगप्रधानविरुदधारक श्रीमजिनचन्द्रसरिजीको भी राजगच्छ विरुद मिला था ऐसे महा प्रभावीक ४९ मा श्रीजिनचंद्रसरिजी भए ॥४९॥ ॥ अथ श्रीजिनकुशलसूरिणां चरित्रम् ॥ तत्रादौ श्रीमरिनामस्मरणमंगलाचरणम् यथा-कुशल अंग उछरंग कुशल विणजे व्यापारे, कुशलदेव देहरे, कुशल धन राजदुवारे, पुन्यपसाये कुशल कुशल श्रीसंघ भणीजे, बाहण आवे कुशल, कुशल घरघर गाईजे, श्रीजिनचन्द्रसूरि पहु पट्टधर, नाममंत्र अरतिटले श्रीजिन कुशलसरि पाय पूजतां, नवनिधान लक्ष्मीमिले ॥१॥ तत्पट्टे ५० मा श्रीजिनकुशलमूरिजी महाराज भए, तिणोंकासंक्षिप्त चरित्र इसप्रमाणे है, इसी जंबूदीप भरत क्षेत्रके मध्य खंडमें मरुस्थल नामें देश है, कैसाहे वहदेश कि सर्वऋद्धि समृद्धि आदिगुणों करके युक्त, स्वचक्र परचक्रादि भय करके वर्जित और सर्व हरखकी कारण वस्तुयें विद्यमान है जिस देशमें, ऐसा मरुधर नामक देश है, तिसदेशमें सर्वधन संपदादिक गुणोंकरके युक्त, और जहांपर आये हुवे देशवासी नगरवासी लोक हरसित होते हैं, ऐसा समियाणा नामकवर गामा, तिस समियाणा नामकवर गामके विषे दमितारि नामका राजा राजपालताथा, उसीवरग्रामके विषे महर्द्धिक सर्वसंपदा सम न्वित अखंड प्रतापी शूरवीर विक्रान्त अखंड आज्ञा ऐश्वर्य करके युक्त, छाजेहड गोत्रमें मंत्री के बुणोंकरके संयुक्त जिल्हागरनामें वरमंत्री For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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