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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ उसके उपकुलसंभूता शीलसुंदरी नामकी प्रधान स्त्रीथी, उणोके सुखसें काल जातां थकां कालक्रमकरके शुभस्वप्नसूचित एक पुत्र हूवा, कुलक्रमागत मर्यादारूप पुत्रका जन्मोत्सवकिया, वाद सूतक निकालके, स्वजातिवगेराकों भोजनकराके पीछे सर्वलोकोंके सामने माता पिताने यह विचार कियाकि यह पुत्र अपने कुलकों अतिशय आनंदकरनेवाला है, इसलिये कुमरका नाम आनंदकुमार होवो, वाद समय जन्मका जोतिषीको देखाया, तव जोतिषीने ग्रह मिलाकर विचारके कहा इसकी माताने वृषभका स्वप्नदेखा है, यह बालक तुमारे कुलमे दीपक समान होगा राजा. ओंकाराजा होगा अथवा विद्वान शिरोमणि भावितात्मा आणगार होगा, और इसका १५ में वर्षमें विवाहहोगा वाद कर्म दोपसें संपदा क्षीयमाण होगा, और तुमारे काल धर्म प्राप्त हूवे वादभी यह कुमार विदेश गमनसें महान् लाभ प्राप्त होगा, और स्त्री सुहवदेवी होगा, उसके पतिका संयोग करीबन डेढ वर्ष पर्यंत रहेगा, बाद विदेशगमन करेगा, और यह कन्याऊंबर पर्यंत सौभाग्यवती हि पिताके घरमे रहिथकी आपना आयु पूर्ण करेगी, और यह कुमर आयु ३३ वर्षके भीतर हि भोगवेगा, और इसकी माताने वृषभका स्वप्नदेखा यह अत्युत्तम है, और शुभ स्वप्नके देखणेसें अल्पायुरादि दोष नहिंहोनाचाहिये, परंतु इसके ग्रहोंसें यह दोष स्पष्टहि मालूम होवे है इसलिये यह हीयमानकालका हि प्रभाव है, इत्यादि निमित्तभावि कहके शुभाशीर्वाददेके जोतिषी खाना हूवा, वाददूसरेदिन बहुत हि तपासकरी परंतु वह नैमित्तीयातो नहिं मिला तब बडे हि आश्चर्यकों प्राप्त हूवे, और विचार किया कि इस बालकके तकदीरसें आयाथा सोचलागया, नहितो विद्वान विदेशी कहांसें For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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