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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ ग्रहण करणा भक्ति भावना करणे कराणे अनुमोदने से इहलोक परलोक आत्मा शरीरादिक निर्मल होवे है, स्वर्ग अपवर्ग की प्राप्ति होवे यह नि:संदेह है, और आपश्री वयस्थविर पर्यायस्थविर श्रुतस्थविरभी हैं, अतः महान् पुरुषहैं, नमोस्तु भगवते श्रीवर्द्धमानाय सर्वकर्मक्षयायच नमोनमः श्रीइन्द्रभूत्यादि एकादशगणधरेभ्यः नमोस्तु अनुयोगवृद्धेभ्यः सर्वसूरिभ्यः नमोनमः कोटिकगणवाशाखखरतरविरुदचांद्रादिकुलधारकेभ्यः नमोस्तुयुगप्रधानपदभृत्, श्रीमजिनभद्रसूरये श्रीमजिनकीर्तिरत्नसूरये च नमोनमः नमोस्तु श्रीसंघभट्टारकाय, इति श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां तत्प. रम्परायांच युगप्रवरागमश्रीमजिनकृपाचंद्रसूरिवराणां नाममात्रेण चरित्रलेशोयं दर्शितः सारंसारं स्फुरद्ज्ञानधामजैनं जगन्मतं, कारंकारं क्रमांभोजे, गौरवे प्रणतिं पुनः ॥ १॥ यथा स्मृत्यनुसारेण, श्रीमदानंदमुनेः चरितमिदमुपदर्श्यतेत्र मयाका, भव्यहितं खपरोपकाराय ॥ २॥ श्रीमदानंदमुनेः चरित्र लेशो यथा-अहो सज्जनो युगप्रवरागमसत्संप्रदायिसत्कियोद्धारकारकः श्रीमजिनकृपाचंद्रसूरिवराणां विद्वतशिरोमणि जेष्ठांतेवासी श्रीमद् आनंदमुनिजी महाराजका लेशमात्र मेरी बुद्धि अनुसार याने स्मृतिधारणानुसार चरित सुणाता हूं सो आपलोक सावधान होकर सुणिये, इसीजंबुद्वीपका यह दक्षिणार्धभरतक्षेत्रके मध्यखंडमे बृहत्मरु नामकदेशहै, उसमे शहर जोधपुरसे पश्चिम भागमे वारणाऊ नामक बरग्रामहै, तत्र भोगवंशे सर्वसंपत्तिसमन्वितो बलश्रीः नाम्नः अभवत्कुलपुत्रकः, इत्यादि उसग्राममें भोगवंशमें उत्पत्ति जिसकी एसा सर्व संपदायुक्त बलश्री नामका एक कुलपुत्रीया रहाता था, For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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