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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाद वैद्यके आग्रहसें इलाजकरानेकों शहरवडोदापधारे, वैद्यनें तनमनसे इलाज किया, तीन महिनेसें तबियत कुछ विहारलायक हूइ, तब मुंबईकी फरसनाके प्रबलतासें वैशाखमासमे वडोदासेविहार किया, क्रमसें डभोइ सीनोर जगडीवा सुरत नवसारी बिल्लीमोरा वरसाड वापीश्रीगांव देणु अगासी भयंडर अंदेरि महिम वगेरा गामोंकों फरसते हुवे, श्रीजिनमंदिरको जात्राकरते हूवे, श्री मुंबई शहर भायखलामें प्रथम पधारे वाद प्रवेशम • होत्सव के साथ लालबागमे पधारे, वहां हि आपका चोमासा सकारण दोय ७२-७३सालका हूवाथा,उससमय आप भगवती सूत्रवृत्ति भावनामे अभय कुमारचरित्र पांडवचरित्र फरमातेथे, उसवाणीको आपके मुखारविंदसे श्रवण करतेंहिं पूर्वसूरियोंका स्मरणहूवा तिसकारण श्रीमुंबई संघने सांप्रदायिक क्रमागत महोत्सवसहित यथाविधि सूरिमंत्रपूर्वक आचार्यद्वारा आचार्यपदमे स्थापित किये, पौषी १५ पुष्यनक्षत्रे आठसें ११ पर्यंत समय में हुवे, मुख्यनाम श्रीमज्जिन कीर्तिसूरीश्वरः, अपरनाम श्रीमजिनकृपाचंद्रसूरीश्वरः नाममें प्रसिद्ध भये, उससमय भगवतीसमाप्त्यर्थ आचार्यपदनिमित्त पंचतीर्थोत्सव पंचपहाडरूप १६ दिनमहोत्सवसामिवत्सलप्रभावनावगेरा बहुतसें धर्मकृत्य हूवेथे, ७३ के चोमासेवाद माघ मासमे विहार किया, क्रमसे धीरे धीरेविहार करते हूवे, अगासी देणुं वापी दमण वलसाड गणदेवी होते हुवे, सुरत जिल्लेमे पधारे मार्गमें ३ साधुकी दीक्षाभइ तिस अवसरमे सुरत निवासनी कमलागुलाबनामकबाईने वुहारी पधारणेंके लिये विनती करी, वाद आप अष्टगांव सातम होते हूवे कडसलिये पधारे, वहांवुहारीसें मुख्यलोक आकर विनती करी, तबसबकी विनती मानकर, बुहारी पधारे उहां श्री For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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