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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar तारंगाजी होते हुवे वीसनगर वडनगर लादोल विजापर माणसा पीथापुर देगांव कपडवंज महूधा खेडा श्रीसच्चादेवमातरमें, खंभातमें श्रीस्तंभणापार्श्वनाथ स्वामिकीजात्राकरी, वाद ७० का चोमासा रतलामवालासे ठाणीजी सेठ श्रीचांदमलजीकी धणियाणी के आग्रहसें पालीताणे किया,भगवती शत्रुजय महात्मवाचा उपधानतप पूजा प्रभावना सामीवत्सलवगेराहूवे, वाद सीहोर वरतेज भावनगर घोघा तणहो तापस तलाजा जामवाडी श्रीश@जयकीजात्राकरके क्रमसें विहारकरते हुवे क्लेमें १ साध्वीकी दीक्षाभइ, खंभायत आये, तबसुरतसें जव्हेरी पाना भाइ भगुभाइ वीन. ती करणेकों आये, तब उनोंकी वीनती मानकर सुरततरफ विहार किया, क्रमसें बडोदा पालेज जिनोरहोते जगडीयाकी जात्राकरते हुवे मार्गमे १ साधुहुवा सुरतरपधारे प्रवेश उत्सव साथ गोपीपुराके नवा उपासरामे पधारे देशनादी, ७१ सालका चोमासा सुरतमें किया, नंदीव्याख्यारमें वांचा१साधुकी दीक्षाहुइ वाद विहार करके कतारगाम कठोर वगेरा फरसते हुवे, तीर्थ जगडीयापधारे, जात्राकरी, मांडवे होके भरुअच्छकी जात्राकरी, वाद क्रमसें पालेज पधारे, वाद वहांसें आमोदजंबूसर होते गंधार तथा कावीतीर्थोंकी जात्राकरके' क्रमसें पादरा दरापरा पधारे पर• न्तु वहां असाताके उदयसें, बुखार मुदती हूवा, परन्तु पंन्यास आणंदसागरजीकी शास्त्रार्थ के लिये आणेकी प्रतिज्ञाथी, तिसकारणपोषी १५ की म्याद पूरण करने के लिया, आपश्री शहर वडोदाकेपास ५ कोसपर ठहरे हुवेथे, आगे विहार नहिं किया, प्रतिज्ञाहानिके भयसें, आपश्रीके जादा तकलीफ होनेपरभी आपश्री स्वप्रतिज्ञा पर्यंत वहांहि रहै, परंतु पंडितामिमानी वह पंन्यास आणंदसागरजी स्वप्रतिज्ञापर हाजरनहिं हूवा, For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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