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जैन विवाह विधि
आखिरी अभिषेक मंत्र वधूवरौ वां पूर्वकर्मानुबन्धेन निबिडेन निकाचितबद्धेन अनुपवर्तनीयेन अपातनीयेन अनुपायेन अश्लेषेण अवश्यभोग्येन विवाहः प्रतिबंधो बभूव
तदस्तु अखंडितोऽक्षयो निरपायो निर्व्याबाधः सुखदोऽस्तु शांतिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु ऋद्धिरस्तु वृद्धिरस्तु धनसन्तानवृद्धिरस्तु ।
यहां पर रिवाज मुजब क्रियाकारक चावल के सात ढेर (ढगले) करा कर उन पर एक एक पैसा पान सुपारी रखवा कर पूजा कराता है और पीछे वर का हाथ कन्या के पांव को चुभाकर कन्या के पांव से सातों ढेर को गवा देता है, उसके बाद उत्तर दिशा में धूव के तारे तरफ कंकु के छांटे तथा चावल नखा कर दर्शन कराते हैं।
बाद मातृगृह (कन्या का घर) में कुलदेव की पूजा कराकर नीचे मुजब मंत्र पढे ।
अनुष्ठितो वां विवाहो वत्सौ समस्नेही समभोगौ समायुषी, समधर्मो समदुःखसुखौ समशत्रुमित्री समगुणदोषौ समवाडनः कायौ समाचारौ समगुणी भवताम् ।
यहां पर वर कन्या के हाथ छुटे करने की विधि शास्त्र में बतलाई है इसलिये कन्या के पिता के कहने पर क्रिया कारक नीचे का मंत्र पढे ।
हाथ छुडाने का मंत्र ॐ अहं जीवस्त्व कर्मणा बद्धः ज्ञानावरणेन बद्धः दर्शनावरणेन बद्धः वेदनीयेन बद्धः मोहनीयेन बद्धः आयुषा बद्धः नाम्ना बद्धः गोत्रेण बद्धः अन्तरायेण बद्धः प्रकृत्या बद्धः स्थित्या बद्धः रसेन बद्धः प्रदेशेन बद्धः ।
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