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जैन विवाह विधि
__ तदस्तु ते मोक्षो गुणस्थानारोहक्रमेण अहँ ॐ । मुक्तयोः करयोरस्तु वां स्नेहसंबन्धोऽखडितः ।
ऐसा मंत्र बोलते हाथ अलग करने चाहिये इस वक्त जमाइ को दायजे में मुताबिक हैसियत के भेट करनी चाहिये, पीछे वर कन्या को वापस चवरी में ले जाकर क्रिया कारक नीचे मुजब आशीष दे ।
आशीर्वाद पूर्व युगादिभगवान विधिनैव येन; विश्वस्य कार्यकृतये किल पर्यणैषीत् । भार्याद्वयं तदमुना विधिनाऽस्ति युग्मं,
एतत्सुकामपरिभोगफलानुबंधि ।। १ ।। यह श्लोक पढ़ कर कपडे की गांठ छोडकर नीचे मुजब आशीष वचन कहे।
"वत्सौ लब्धविषयौ भवताम्" यहां पर वर कन्या को कंसार (लापसी) जिमाने का रिवाज है, उसके बाद दोनों पक्ष की (वर तथा कन्या पक्ष की) सुहागिन स्त्रियों के पास कंकु का तिलक और चावल से बधाकर अखंड सुहाग का आशीर्वाद दिलाकर खुशी मनाई जाती है ।
इतनी तमाम विधि होने के बाद नीचे मुजब क्षमा प्रार्थना करे - आज्ञाहीनं, क्रियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं कृपया देव! क्षमस्व परमेश्वर ! ।। १ ।।
यह बोलकर चवरी के कुंकुम के छांटे दिलाकर च विल से बंधाकर वर कन्या को गाजे बाजे के साथ विदा करे, वर के वहां वर की माता वथा कर भीतर प्रवेश करावे ।
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