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जैन विवाह विधि
स्वर्णरूप्यमणिभूषणभूषितां कन्यां ददात्ययं प्रतिगृण्हीय ।।
यह मंत्र क्रियाकारक पढ रहे तब कन्या का पिता अपने हाथ में रखे हुए तिल वगैरह वर कन्या के जुड़े हुए हाथ में रखे ।
यहां पर वरराजा को चाहिये कि 'प्रतिगृहामि प्रतिगृहीता' ऐसा बोले। क्रियाकारक कहता है कि 'सुप्रतिगृहीताऽस्तु शांतिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु ऋद्धिरस्तु वृद्धिरस्तु धनसंतानवृद्धिरस्तु।
इसके बाद कन्या का हाथ नीचे वर का हाथ ऊपर इस तरह रखाकर उनके पास चावल का हवन करावे और वर को अगाडी कन्या को पीछे इस तरीके से चौथी प्रदक्षिणा दिलावे ।
पीछे वर को दाहिनी तरफ और कन्या की बायीं तरफ बिठाकर क्रियाकारक अपने हाथ मे डाभ धरो चावल और वासखेप लेकर मंत्र पढे।
येनानुष्टानेनाऽऽद्योऽर्हन् शुक्रादिदेवकोटिपरिवृतो भोगाय संसारिजीवव्यवहारमार्गसंदर्शनाय सुनंदा सुमंगले पर्यणैषीत् ज्ञातमज्ञातं वा तदनुष्ठानमनुष्ठितमस्तु। ____ यह मंत्र पढकर वर कन्या के मस्तक पर वासखेप डाले पीछे कन्या का पिता जब तिल डाभ और जल हाथ में लेकर वर के हाथ मे देकर नीचे मुजब पढे -
'सुदाय ददामि, प्रतिगृहाण' वर कहता है - 'प्रतिगृहामि परिगृहामि प्रतिगृहीतं परिगृहीतम्' क्रियाकारक कहता है कि -
'सुप्रतिगृहीतमस्तु सुपरिगृहीतमस्तु' । बाद क्रियाकारक नीचे दिया हुआ मंत्र पढकर वर कन्या के मस्तक पर डाभ के अग्र भाग से तीर्थजल छिडके ।
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