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________________ [34] जैन लिंग निर्णय // | श्री उत्तराध्येनजी अध्येन 36 वामें गाथा 11 में लिखा है सो पाठ दिखाते हैं। .. जददुःखंभरेउजे होयबायस्सकोथले तहादुखकरे उजे कीवेणसमणतणं // 1 // अर्थः-जैसे दुख करके भरवोजो होय बायरे का वस्त्र की शैली अर्थात् कोथला में न भराय तैसेही संजम पालना भी मंद संघेन अर्थात् कायर पुरुषों से यतीपना पालना बहुत मुशकिल है इस कहने से मालुम होता है कि बादर वायु वस्त्रों के कोथले में नहीं भरी गई अर्थात् न रुको तो तुम्ह री मुहपत्ती एक तरफ बांधने से और तीन तरफ खुली रहने से क्योंकर स्कसक्ती है क्योंकि कोथला चारों तरफ से बंद है इसलिये तुम्हारे कहने से ही मालुम पड़ता है कि होठोंसे बाहर निकली अटफर्सी होजाती है तो वायुकाय की हिंसा क्योंकर बची जब मुहपती बांधना भी न जची लौकीक में विरुद्ध और जिन आज्ञा विपरीत मुख बांधनेसे भी वायुकयकी हिमा लगली रही ये तुम्हारी मनोकल्पित तरक सूत्र के परमाण से बहीं अरे भव्य जीवों मानो तो हमारी कहीं हमने कितनी देखाई सूत्रों की सही अनुमान ( 1712) वर्ष पीछे जैन धर्म से बिरुद्ध मुखपर मुहपती बांधना ये बात चली नहीं छोडो वा मत छोडो हमने तो करुणा कर इतनीशिना कही मानो तो होगा कल्याण समझो ये बात सही इतनी बात सुन कर मुहपत्ती बांधने वाले हटग्राही बालकों कीसी तरक करके कहते कि आप सब कहतेहो परंतु बुद्धी का विचार नहीं करते क्योंकि देखो जिसवक्त में गोतम स्वामी गोचरी को गयेथे उस वक्त यवन्ता कुमार ने गोतम स्वामीजी की उंगली पकड़ के अपने घर बहराने लेगया और वहां से लाडू बहराय कर श्री गोतम स्वामी के साथ उंगली पकड़े हुवे साथ में चला और रस्ते में कहने लगा कि हे स्वामी नाथ आप के पास झोली में बोझा बहुत है सो मेरे को दे /
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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