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________________ कुमतोच्छे इन भास्कर // [35] दीजिये में ले चलूं उस वक्त में श्री गोतम स्वामी ने समझाया उस वक्त एक हाथ में झोली थी और दूसरे हाथ की उंगली देवता कुमार पकडे था तो फेर मुंहपती किम जगह थी क्या वे उघाडे बोलते थे इसलिये क्यों हम को खोटी बात समझाते हो अपनी बात को गमाते हो पकडी टेक हमारी को छुड़ाते हो इसी में हमारा मुख बांधना सिद्ध होगया उत्तर भोदेवान प्रिय! हम को मालम हुवा कि मिथ्यात्व रूप प्याले की तुमने घुटकी लीवी अरे भाई बाह का विचक्षण रणा छोड़ हृदय नेत्र को खोल मिथ्या वाक्य मत बोल सूत्र के अर्थ को तोल जिस से मिले तुझ को जैन धर्म अमोल क्यों कु गरु के बहकाने से होता है डावां डोल अब हम तेरे को समझाते हैं कि देखा अब्बल तो शास्त्रों में कहा है कि साधु रस्ते चलते बोले नहीं क्योंकि रस्ते चलते बात करे तो इरिया समती न बने क्योंकि एक समय नथी दो उपयोग इसलिये रस्ता की बात तो तुम्हारी सिद्ध न हुई अब दूसरी सूनो कि जिस रीति से ढूंढिया लोग गोचरी को जाते हैं और हाथ में झोली को पकड नीचे को लटकाते हैं गृहस्थियों के घर में पात्रों को बखेर अपनी दुकान को लगाते हैं साधु आहार गृहस्थी को दिखाना भगवत ने मने किया परंतु ये तो घर घरमें दिखाते हैं ऐसा श्रीगोतम स्वामी थोडाही करते थे क्योंकि वे तो आत्माअर्थे जिन आज्ञा आराधक प्रथम गणधर सब में प्रधान परवर जिस. रीति से साधु के चउदे उपगरण कहे हैं उसी रीति से रखते थे और झोली में पात्रा रख ढूंढियों की तरह नहीं लटकाते थे कोनी और पोच के बीच में झोली को अटकाते थे ऊपर से पटला पटकाते थे गहस्थियों को अपना आहार नहीं देखात थे इस रीति से गोचरी को जाते थे इसी रीति से जो यवंता कुमार ने एक हाथ की उंगली पकड़ी तो जिस हाथ में झोली लिये हुये थे उस हाथ में मोहपत्ती होगी क्योंकि अंगूठा और टंगली खाली रहती है क्योंकि साधुओं की झोली कोनी ओर पोंचे के बीच में रहती है तो तुम्हारे को क्योंकर संदेह
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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