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________________ कुमतौछंदन भास्कर // [33 ] परंतु तुम्हारी समझ में किंचित भी न आया हे भोले भाइयो शास्त्रों में आठ प्रकार की बर्गना कही है सोही दिखाते हैं 1 उदारिक वरगना 2 वेकीय वरगना 3 आहारिक वरगना 4 तेजस वरगना 5 भाषा वरगना 6 उसास वरगना 7 मन वरगना 8 कारमान वरगना ये आठ वरगना में से चार तो बादर अर्थात् मोटी है और चार अर्थात् भाषा , स्वास 2 मन 3 कारमान 4 ये शक्ष्म अर्थात् छोटी बरगना है पहले की चार बरगना में बीस गुणपाते हैं पांच बर्ण 5 रस 2 गंध 8 स्पर्श ये बीस गुण उदारीक विक्रये आहारीक 2 तेजस मेंपामे इसलिये इनकू बादर अर्थात् मोटी कही और पांच रस 5 वर्ण 2 गंध 4 स्पर्श ये सोलेगण भाषा 1 उश्वास 2 मन 3 और कारमान 4 सोले गुण पामे इसलिये इनकं सदन अर्थात् छोटी बरगना कया इस वास्ते बुद्धिमान आत्मार्थी विचार करना चाहिये कि वायकायका जीव उदारिक शरीर वाला है सो उदारिक वरगना से बनाया है सो उसमें आठ स्पर्श है और भाषा बरगना में चार स्पर्श है तो फेर भाषा से वायुकायकी हिंता होती है ये बात बुद्धिमानोंकी बुद्धि में असंभव है क्योंकि आठ बर्ष के बालकको चार बर्ष का बालक नहीं मार सके इमलिये कुछ बुद्धि का विचार करो पक्षपात को परिहरो मिथ्यात्व को पुष्ट मत करो जैन लिंग को धारण करो अन्य लिंग को परिहसे हम तो कहने वाले आगे मरजी तुम्हारी इसपर अख बांधने वाले कहते हैं कि भाषा बरगना चोफर्सी है परंतु होठों से बाहर शब्द अटफर्सी होजाता है इसलिये वायुकाय की हिंसा कहते हैं अरे भोले भाइयों होठों से निकलकर भाषा परगना का शब्द अठर्स होजायगा ऐसा किमी सत्र में लिखा है तो हमको भी बतलाइये क्यों नाहक बुद्धि विकल जतलाई है क्यों अपनी आपही हंसी कराई है सत्र के परमाण बिन अटफर्सी बताता तब महपत्ती बांध करके वायुकाय को हिंसा | क्योंकर बचाई कदाग्रह कू छोडो कुछ समझोरे भाई क्योंकि देखा।
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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